क्या वन नेशन वन इलेक्शन से लोकतिंत्रक देश पर हो रही तानाशाही की तैयारी ?

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राजनीति /जनमत। देश में वन नेशन वन इलेक्शन की कवायद जारी है. बताया जा रहा है कि बीजेपी इस शीतकालीन सत्र में ये नया कानून पास करवा कर ही मानेगी . लेकिन विपक्ष लगातार इस नये कानून का विरोध कर रहा है.दरअसल विपक्ष का कहना है कि इस कानून के लागु होने से संविधान की गरिमा मर जाएगी. और इसी के साथ जो हमारे देश के आम जन हैं उनकी समस्याओं का निर्धारण नहीं किया जाएगा. क्योंकि इस तरह से बीजेपी तानाशाही राज स्थापित कर लेगी

आइये जानते हैं क्या है वन नेशन वन इलेक्शन ?

आपको बता दें कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के नेतृत्व वाली एक उच्चस्तरीय समिति ने एक प्रस्ताव पास किया है जिसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ-साथ चरणबद्ध तरीके से नगर निकाय और पंचायत चुनाव कराये जाएंगे  लेकिन मंत्रिमंडल ने फिलहाल स्थानीय निकाय चुनावों के मुद्दे से दूरी रखने का निर्णय किया.

क्यों लाया लाया गया ये कानून ?

“चुनाव की वजह से जो बहुत ख़र्चा होता है, वो न हो. बहुत सारा जो लॉ एंड ऑर्डर बाधित होता है, वो न हो. एक तरीक़े से जो आज का युवा है, आज का भारत है जिसकी इच्छा है कि विकास जल्दी से हो उसमें चुनावी प्रक्रिया से कोई बाधा न आए.”

कब से हो सकता है एक देश एक चुनाव लागू

पूर्व राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने 14 मार्च 2024 को रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे कैबिनेट ने सितंबर 2024 में स्वीकार कर लिया था. अब करीब तीन महीने बाद विधेयक के मसौदे को कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है तो संसद के इसी सत्र में इसे पेश भी किया जाएगा. एक देश एक चुनाव बीजेपी का पुराना मुद्दा रहा है.

मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में इसे कानून के रूप में बनाने की प्रक्रिया शुरू करने जा रही है. अगर यह कानून बन जाता है तो यह साल 2029 या 2034 से सक्रिय होगा. हालांकि सरकार ने इसे लेकर कुछ नहीं कहा है. सरकार समिति के माध्यम से विभिन्न राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों से भी परामर्श करने की इच्छुक है.

देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए इससे जुड़े विधेयक पर कम से कम आधे राज्‍यों की मंजूरी लेनी होगी, जो कि आसान नहीं होने वाला है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के सामने जिन पार्टियों ने एक साथ चनाव कराए जाने की राय रखी थी, अब लोकसभा में उनके 270 सांसद हैं. जिन्‍होंने न समर्थन किया है और न विरोध, उनके सांसदों की संख्‍या जोड़ दें तो यह आंकड़ा 293 पर पहुंचता है, अगर ये सभी सदन में केंद्र सरकार का समर्थन कर भी दें तब भी यह विधेयक तभी पारित होगा, जब वोटिंग  लिए कुल 439 सदस्‍य ही मौजूद हों. अगर विधेयक की वोटिंग के लिए सभी सांसद पहुंचे गए तो फिर लोकसभा से इसे पारित कराने के लिए दो तिहाई यानी कि 362 सांसदों की जरूरत होगी. ऐसे में यह भी संभव है कि लोकसभा में यह विधेयक पारित ही न हो.

वहीं इस मुद्दे पर अखिलेश यादव ने कहा है कि जो सरकार बारिश, पानी, त्योहार, नहान के नाम पर चुनावों को टाल देती है, वो एक साथ चुनाव कराने का दावा कैसे कर सकती है. ‘एक देश, एक चुनाव’ एक छलावा है, जिसके मूल कारण में एकाधिकार की अलोकतांत्रिक मंशा काम कर रही है. ये चुनावी व्यवस्था के सामूहिक अपहरण की साजिश है.

Published by Priyanka Yadav