राजनीती (जनमत) :- देश की राजनीती में हो रहें बदलाव का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि कल जो दुश्मन थें आज वो गलबहियां मिलकर बयान दे रहें है. इसे कहते है राजनीती जिसमे कोई कभी पराया नहीं होता और कोई ऐसा नेता नहीं है जो दल बदल और हर दल से मिलकर न चलता हों. उत्तर प्रदेश में जहाँ विधान सभा चुनावों में साइकल – हाथ का साथ था वहीँ अब इसी साइकल पर हाथी सवार है. वहीँ इसके बाद से ही जहाँ प्रदेश की राजनीती में दो दलों का गठबंधन हुआ वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस अलग थलग पद गयी और करीब चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दलों में वार-पलटवार का सिलसिला शुरू हो चूका है.
यूपी में महागठबंधन द्वारा कांग्रेस के खिलाफ दो सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारने के फैसले के जवाब में कांग्रेस ने राज्य की करीब सात सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारने का ऐलान किया था। जिसके बाद से ही प्रदेश की राजनीती का माहौल और भी गर्म हो गया है, हालांकि बीएसपी चीफ मायावती ने कांग्रेस इस कथित “प्रेम” को कोई भाव नहीं दिया और जोर का झटका देते हुए यह ज़रूर साफ कर दिया की कांग्रेस 7 सीटें छोड़ने का भ्रम न फैलाए और वह राज्य की सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है, उसे किसी ने नहीं रोका है.
वहीँ जहाँ मायावती के इस कठोर कदम से समाजवादी पार्टी के चीफ अखिलेश यादव ने भी समर्थन किया है। जिससे कांग्रेस को इस बात का अंदाजा लग गया होगा की इस गठबंधन में कांग्रेस की जगह अब नहीं रह गयी है वहीँ साथ ही बसपा सुप्रीमो ने भी साफ़ कर दिया की कांग्रेस के साथ देश के किसी भी हिस्से में गठबंधन नहीं करेगी. दूसरी तरफ अखिलेश ने मायावती के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा कि यूपी में एसपी-बीएसपी-आरएलडी का गठबंधन बीजेपी को हराने में सक्षम है। कांग्रेस किसी तरह का कन्फ्यूजन ना पैदा करे। हमारे गठबंधन में कांग्रेस की कोई जगह नहीं है.