व्यक्त्ति-विशेष(Janmat news): हमारे देश में डॉक्टर्स को फरिश्ता माना जाता है जो बीमारी से जूझ रहे मरीजों की जान बचाते हैं। आज डॉक्टर डे के मौके पर हम आपको एक ऐसे ही डॉक्टर से मिलाने जा रहे हैं। जो आज अपने पेशे को अपना धर्म मानते है कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी से जूझ रहे गरीब और असहाय लोगों की जान बचाने का काम कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं डॉक्टर स्वप्निल माने की जो गांव-गांव घूम कर गरीब और जरुरतमंद कैंसर पीड़ितों को निशुल्क और स्वार्थहीन भाव से सेवा कर रहे है।
अपनो को मरता देख, लिया डॉक्टर बनने का संकल्प
डॉक्टर स्वप्निल की मां का सपना था कि उनका बेटा बड़ा होकर डॉक्टरर बने और गरीब लोगों का इलाज करे। स्वप्निल भी बचपन से डॉक्टर ही बनना चाहते थे उन्होंने अपनी आंखों के सामने कई बच्चों और अपने करीबी लोगों को कैंसर जैसी भयानक बीमारी से मरते हुए देखा था। तभी से स्वप्निल ने कैंसर के इलाज पर पढ़ना शुरू कर दिया। स्वप्निल बताते है कि कैंसर से मरने वालों में ज्यादातक लोग महंगे इलाज की वजह से जान गवां देते थे। वो नहीं चाहते थे कि अब किसी भी बच्चे की जान कैंसर से जाएं। तभी से उन्होंने कुछ करने की ठानी। अपने बचपन के अनुभव को शेयर करते हुए स्वाप्निल बताते है कि जब वो 8 साल के था तब उन्होंने अपने एक पड़ोस में रहने वाले एक शख्स को कैंसर से मरते हुए देखा था। उन्हें फेफड़ों का कैंसर था। कैंसर से मरने वाला शख्स मजदूरी करके अपने परिवार का पेट भरता था और रोजाना दिहाड़ी पर 60 रुपये कमाता था। इलाज मंहगे होने की वजह से वह मजदूर अपना इलाज नहीं करा और उसकी मौत हो गई।
आर्थिक कमजोर और असहाय लोगों की करते है मदद
डॉ. स्वप्निल आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को कैंसर जैसी महंगी बीमारी का इलाज मुफ्त मुहैया कराते हैं। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में शिरडी से करीब 35 किलोमीटर दूर राहुरी में वह डॉ. माने मेडिकल फाउंडेशन एंड रिसर्च सेंटर है। जहां उन्होंने कैंसर के मरीजों के लिए 25 बेड का कैंसर हॉस्पिटल साई धाम बनाया है। इस अस्पताल में कैंसर के मरीजों को बेहद कम कीमत पर इलाज मुहैया कराया जाता है। आर्थिक रुप से कमजोर लोगों का इलाज फ्री किया जाता है। डॉ. माने ने अपने 13 डॉक्टर और छह साथियों के साथ मिलकर अब तक महाराष्ट्र के पचास से ऊपर गाँवों में फ्री कैंसर चेक-अप और मेडिसिन डिस्ट्रीब्यूशन कैम्प का आयोजन किया है।
अपनी टीम के साथ गांव-गांव घूमकर कर रहे है मदद
कैंसर के स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं और कैंसर रोगियों के लिए अपने साथियों के साथ मिलकर गांव-गांव कैंप लगाते हैं। तब की अपनी आर्थिक स्थिति पर बात करते हुए वो बताते हैं, ” पिता जी एक बैंक में काम करते थे सेवा निवृत्त हो गये हैं। माताजी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थी जो घर का खर्चा चलाती थी। घर की स्थिति ज्यादा ठीक नहीं थी इसलिए हम लोग अपने पड़ोसी का इलाज नहीं करवा सके।
इसके बाद वे राजनीति में आ गए। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सदस्य बने और बाद में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री का पद भी संभाला। डॉ. राय को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था। 80 वर्ष की आयु में 1962 में अपने जन्मदिन के दिन ही उनकी मृत्यु हो गई। इस दिन पूरे देश में डॉक्टर्स का सम्मान कर उन्हें मैसेज कर, कार्ड भेजकर उनका अभिवादन किया जाता है। ऐसे ही दूसरे देशों में अलग-अलग दिन डॉक्टर्स डे मनाया जाता है।