गोरखपुर/जनमत 07 नवम्बर 2024। सूर्योपासना लोक पर्व छठ महापर्व भारतीय संस्कृति का सबसे लोकतांत्रिक पर्व कहा जा सकता है। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें लोक संस्कृति व समाज से प्राप्त होने वाली वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। इसकी यह भी एक बड़ी विशेषता है कि इसमें किसी पुरोहित की कोई भूमिका नहीं होती है।
प्रकृति से सहज रूप से प्राप्त फल-फूल इत्यादि इसकी सामग्री है। इस पर्व में प्रयुक्त होने वाली किसी भी सामग्री का निर्माण किसी फैक्ट्री में नहीं होता। लोकजीवन में सहज प्राप्त सूप, चंगेरी, ठेकुआ आदि इसके उदाहरण हैं। उक्त बातें एक विशेष भेंट में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो.राजवन्त राव ने छठ पर्व के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कही।
उन्होंने कहा कि पूर्वांचल के मागी ब्राह्मणों एवं भोजकों द्वारा छठी शताब्दी के लगभग छठ पर्व का आरम्भ हुआ। आज इसका स्वरूप राष्ट्रव्यापी हो चुका है। इसका विस्तार विदेशों तक में हो चुका है। यह पर्व संतान की संरक्षिका व कार्तिकेय की पत्नी षष्ठी देवी तथा पुत्र प्राप्ति व अन्य कामनाओं हेतु सूर्यदेव से संबंधित है। छठ पर्व सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व का है। उन्होंने कहा कि पूर्वांचल में सूर्य पूजा को लोकप्रिय बनाने का कार्य मागी एवं भोजक ब्राह्मणों द्वारा किया गया। इच एवं अर्क नामान्त जितने भी स्थान हैं यथा बहराइच, पिपराइच, खड़राइच, लोलार्क, देवार्क, निम्बार्क, बालार्क आदि सूर्यपूजक स्थान हैं। इन स्थानों से सूर्य प्रतिमायें एवं सूर्य मंदिर प्राप्त हुये हैं। पूर्वांचल से बड़ी मात्रा में सूर्य प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। इस पर्व में सूर्यास्त एवं सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष प्रो. प्रज्ञा चतुर्वेदी ने कहा कि सूर्य पूजा की परम्परा वैदिक काल से चली आ रही थी। यह गुप्त काल में रोगनिवारण एवं कामनाओं की पूर्ति हेतु लोकप्रिय हुआ। उन्होंने मातृ देवी षष्ठी के प्रतिमा लक्षणों पर प्रकाश डाला।
प्रो.रामप्यारे मिश्र ने सूर्य षष्ठी पूजा के पौराणिक संदर्भों का विवेचन किया। सूर्यदेव लौकिक संसार के दृश्य ईश्वर हैं। ये ऋतु परिवर्तन, उर्जा एवं कृषि के कारक देव भी हैं। यह पर्व मातृदेवी षष्ठी एवं सूर्य देव के समन्वय का परिणाम है। सूर्य का संबंध संतानोत्पत्ति से भी है और षष्ठी देवी संतान संरक्षिका हैं। यह काफी रोचक है कि प्रसूति गृह को सौर कहा जाता था। जो सूर्य वाची है और संतान उत्पत्ति के छठे दिन षष्ठी पूजा की जाती थी। इस प्रकार दोनों का समन्वित रुप है छठ पूजा। जो आज संतान व पति के सौभाग्य प्राप्ति के साथ सभी प्रकार के कामनाओं की पूर्ति तथा रोगनिवारण से संबंधित हो गया है। यह अत्यंत पवित्र त्योहार है।
REPORTED BY – KAMLESH MANI BHATT
PUBLISHED BY – MANOJ KUMAR