विपश्यना ध्यान की प्रभावी पद्धति : डॉ. कंडेगमा दीपावंसालंकार थेरो

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गोरखपुर/जनमत/20 दिसम्बर 2024। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय स्थित महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ में कुलपति प्रो.पूनम टण्डन के संरक्षण में चल रहे सप्तदिवसीय शीतकालीन योग कार्यशाला में ‘योग एवं दर्शन’ विषय पर बौद्ध दर्शन में विपश्यना विषयक कार्यशाला संपन्न हुई।

कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि के स्वागत के साथ शोधपीठ के उप निदेशक डॉ.कुशलनाथ मिश्र के द्वारा हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता बुद्धिस्ट एवं पालि विश्वविद्यालय, श्रीलंका के पालि विभाग के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ.कंडेगमा दीपावंसालंकार थेरो रहे।
डॉ.कंडेगमा थेरो इससे पहले शोधपीठ एवं उसके पुस्तकालय का भ्रमण किया। उन्होंने अपना व्याख्यान शोधपीठ के आडियो-विजुअल कक्ष से दिया। उन्होंने बौद्ध दर्शन में विपश्यना के सभी आयामों अनुपश्चयना, चित्तानुपश्चयना, कायानुपश्चयना, वेदनानुपश्चयना पर विस्तृत प्रकाश डाला।
डॉ.थेरो ने ध्यान के दो रूप समथ एवं विपश्यना पर चर्चा करते हुए कहा कि विपश्यना ध्यान की प्रभावी पद्धति है। उन्होंने कहा कि वस्तुओं के वास्तविकता को समझना व देखना विपश्यना है। हमें अपने मन को शांत रखना चाहिए। आसक्त नहीं होना चाहिए। हमे मानसिक गतिविधियों को समझना चाहिए। अपने अंदर देखना चाहिए। हमारे मन में अनंत विचार उत्पन्न होते है। ये विचार क्षणिक होते है। इन्हे मन से देखना चाहिए। इन्हे नियंत्रित करने के लिए हमे विपश्यना करना चाहिए।
प्रशिक्षण सत्र के तीसरे दिन भी प्रतिभागियों की काफी संख्या रही। योग प्रशिक्षण डा.विनय कुमार मल्ल के द्वारा दिया गया। योग प्रशिक्षण में लगभग 30 लोगों ने भाग लिया। इसमें स्नातक, परास्नातक, शोध छात्र आदि विद्यार्थी एवं अन्य लोग सम्मिलित हुए।
कार्यक्रम का संचालन शोधपीठ के रिसर्च एसोसिएट डॉ. सुनील कुमार द्वारा किया गया। शोधपीठ के सहायक निदेशक डॉ. सोनल सिंह द्वारा मुख्य वक्ता एवं समस्त प्रतिभागियों एवं श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के साथ ही विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के आचार्य सहित डॉ.रंजन लता, डॉ. मृणालिनी, डॉ.श्रीनिवास मिश्र, शोधपीठ के सहायक ग्रन्थालयी डॉ.मनोज कुमार द्विवेदी, वरिष्ठ शोध अध्येता डॉ.हर्षवर्धन सिंह, चिन्मयानन्द मल्ल आदि उपस्थित रहे।

REPORTED BY KAMLESH MANI BHATT

PUBLISHED BY MANOJ KUMAR