लखनऊ (जनमत) :- हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की लखनऊ में बेरहमी से हुई हत्या कही किसी बड़ी साज़िश का तो हिस्सा नहीं है। यह सवाल हमारा नहीं है बल्कि उन पीड़ितों का है जिन्होंने कमलेश के रूप में अपने पिता, पत्नी, भाई और बेटे को खोया है। लोकतंत्र में ऐसे सवाल उठने भी लाजिमी है। पहले हिंदूवादी नेता कमलेश को पूर्व की सरकार द्वारा दी गई सुरक्षा को हटाकर मात्र एक सुरक्षा कर्मी की तैनाती उनके घर पर की गई। बाद में कमलेश के कार्यालय स्थित घर में ही उनकी गोली मारने के बाद गला रेतने के बाद चाकू से गोदकर बड़ी बेरहमी से उनकी हत्या कर दी गई। सनसनीखेज वारदात हो जाने के बाद पुलिस के मुखिया ने पहले बयान दिया कि घटना किसी आपसी रंजिश का नतीजा है।
डीजीपी के द्वारा अगले दिन आनन – फानन में प्रेस वार्ता कर यह बताया गया कि कमलेश की हत्या के तार गुजरात के सूरत से जुड़े है। साथ ही तीन साज़िशकर्ता को गिरफ्तार कर घटना का राजफाश करने का भी दावा कर दिया। हालांकि कमलेश के ढाई – ढाई लाख रूपये के दो इनामी हत्यारे अभी फिलहाल फरार है। इन सबके बाद भी मामले में जिस तरह से मृतक कमलेश तिवारी के परिजनों के बयान आ रहे उससे पूरी घटना किसी बड़ी साज़िश का इशारा कर रही है। इसके अलावा मृतक की माँ के साथ ही अन्य परिजनों की जब मुख्यमंत्री के पांच कालिदास स्थित सरकारी आवास पर सीएम योगी से मुलाकात हुई और उसके बाद मृतक की माँ का मुखर होना साफ बताता है कि अब तक की हुई कार्रवाई से वह कतई संतुष्ट नहीं है। इसे समय की मार कहे या फिर एक पीड़िता का दर्द कि इन्साफ के लिए उम्र के आखिरी पड़ाव में पहुंच चुकीं मृतक कमलेश की बुजुर्ग माँ खुद तलवार उठाने की बात कर रहीं है।