पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने में जुटे महेश

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फर्रुखाबाद (जनमत):- राजेपुर क्षेत्र के इस प्रकृति के पुजारी ने पर्यावरण को बचाने के लिए समाज को आइना दिखाया है| बरेली हाइवे के पास तुषौर गाँव में चार बीघे जमीन पर बना फूल बाग़ केवल महेश राठौर की वाटिका नहीं बल्कि यह तो बाढ़ की विभीषिका से हर साल घिरने वाले गंगापार क्षेत्र को हरा- भरा रखने का संकल्प दिलाने वाला हरियाली घर है| पर्यावरण की खुशबू से हर कोई फूल बाग़ में खिंचा चला आता है| यहाँ तीस प्रकार के फूल खिलते हैं और तीस तरह के फल सुगंघ बिखेरते हैं| महेश राठौर का यह प्रयास हरियाली बचाने और पेड़ लगाने की अद्भुत प्रेरणा दे रहा है|

हरियाली के बहुत करीब पहुँच कर पर्यावरण के पुजारी बने महेश राठौर उच्च प्राथमिक स्कूल में प्रधानाध्यापक हैं| प्रकृति प्रेम की शिक्षा उन्हें अपने शिक्षक पिता वीर पाल सिंह से मिली। पिता को पेड़- पौधों से बहुत लगाव था| क्षेत्र में कहीं हरा पेड़ कटने की जानकारी मिलती तो वह पहुँच जाते और लोगों को पेड़ न काटने के लिए मनाने का प्रयास करते।  2007 में अंतिम साँसे लेते समय पिता ने बेटे को यही अपनी अंतिम इच्छा बताई कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए उनके द्वारा जलाई गयी मशाल को बुझने न दिया जाए| पिता से किये गए वादे को पूरा करने के लिए महेश पूरे हौंसले से जुट गए| फूल बाग़ बनाने के लिए उन्होंने बरेली हाई वे पर चार बीघा जमीन खरीदी।

यहाँ विभिन्न किस्मों के फल और फूल के पेड़- पौधे लगाकर बाग़ विकसित किया। अपने पिता की प्रतिमा स्थापित की हरियाली से शुकून पाने के लिए लोग फूल बाग़ की और खींचे चले आने लगे| प्रकृति उन्मुख ध्यान के लिए गोल छप्पर वाली झोपडी बनाई। फूल बाग़ में सिंचाई के लिए कृषि विभाग ने कम मूल्य पर रेनपोट सिस्टम उपलब्ध कराया है|महेश राठौर बताते हैं कि उन्हें फूल बाग़ का वर्तमान स्वरुप देखकर इस बात का बहुत सुकून मिलता है कि वह अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा कर सके| पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए उनके प्रयास से जब अधिकारियों की सराहना मिली तो हौंसला और बढ़ा महेश राठौर ने अपने पुत्र आशुतोष को भी प्रकृति प्रेम की शिक्षा दे दी है|

आशुतोष भी फूल बाग़ को विकसित करने के पिता के काम में सहयोग करते है| ग्रामीण अर्जुन सिंह और आनंद ने भी महेश राठौर के प्रयास को सराहा और बताया कि फूल बाग बनने के बाद से उनके गाँव में बीमारियाँ कम हो गयी हैं| महेश राठौर का फूल बाग़ लोगों में वानिकी के प्रति चेतना जगा रहा है|  पर्यावरण संरक्षण से बाढ़ की विभीषिका पर भी मरहम लगाने में कामयाबी पाई है| महेश का यह प्रयास उन सरकारी प्रयासों को भी तमाचा है जिनमे हार साल हजारों पेड़ लगाए जाते हैं और साल बीतते- बीतते उनका कोई पता नहीं रहता।

Posted By:-Varun Dubey