मुजफ्फरनगर(जनमत):- उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में मनरेगा के नाम पर लूट मची है। इस लूट – खसोट के चलते जरूरतमंद ग्रामीण मजदूरों को तो लाभ शायद मिल ही रहा हो लेकिन सबसे ज्यादा मनरेगा के रूपये से अधिकारी और ग्राम प्रधानों की बल्ले बल्ले हो चुकी है। मनरेगा के धन का किस तरह से दुरूपयोग हो रहा है इसका एक नमूना यूपी के मुजफ्फरनगर में देखिये। यहाँ नाबालिग स्कूली छात्रों से मनरेगा का कार्य कराया जा रहा है। इनका न तो कोई जॉब कार्ड है और न ही कोई खाता। ऐसे में बड़ा सवाल है कि मनरेगा का रुपया आखिर किसके खाते में जा रहा है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा / MNREGA) भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है।
इस योजना के तहत गरीब परिवारों को रोजगार दिया जाता है। कोरोना काल में सरकार ने प्रवासी कामगारों के पुनर्वास और ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा योजना के तहत भारी – भरकम बजट जारी कर दिया। सरकार द्वारा जारी यह बजट ग्राम प्रधानों के लिए मानों एक वरदान साबित हो चुका है। यही वजह है कि मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों में धांधली अब आम बात हो चुकी है। मुजफ्फरनगर के मामले से साफ पता लगता है कि यहाँ के अधिकारी किस तरह से लापरवाह और बेअंदाज है। यहाँ कक्षा 8 से लेकर कक्षा 10 के नाबालिक छात्रों के हाथों में फावड़ा देकर उन्हें मनरेगा का मजदूर बना दिया गया।
हद तो तब हो जाती है जब मुजफ्फरनगर सिंचाई विभाग का एक कर्मचारी मौके पर खुद खड़ा होकर कक्षा 8 के नाबालिग छात्रों के हाथों में फावड़ा देकर उनसे कार्य करवाता है। यहाँ एक नहीं बल्कि 17 नाबालिग छात्रों से मनरेगा का कार्य कराया जा रहा है। नाबालिक बच्चों का अकाउंट नहीं – जॉब कार्ड नहीं तो फिर मनरेगा की मेहनत का रूपये किस के खाते में जा रहा है यह बड़ा सवाल है। सूत्रों के मुताबिक अगर मामले की उच्च स्तर से जाँच की जाये तो बड़ा फर्जीवादी पकड़ में आ जायेगा। सरकार की मंशा थी ग्रामीणों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिले और उनकी दिक्क़ते दूर हो। सरकार की मंशा तो साफ थी लेकिन अधिकारियों और ग्राम प्रधानो ने मनरेगा के धन का जमकर बंदरबाट किया। इस योजना का सबसे बड़ा लाभ तो ग्राम प्रधानों को मिला। किसी ग्रामीण को मनरेगा के तहत काम मिला या न मिला हो लेकिन ग्राम प्रधानों ने अपनी झोली जरूर भर ली।
Posted By:-Sanjay Kumar