महराजगंज (जनमत) : यूपी के महराजगंज जिले के ईटहिया में स्थित पंचमुखी शिव मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. ऐसी मान्यता है कि राजा बृषभसेन की नंदिनी गाय ने झाड़ियों के बीच अपना दूध चढ़ाया था,जिसके बाद यहां पंचमुखी शिवलिंग उत्पन्न हुुआ. इसके बाद 1968 में यहां शिव मंदिर का निर्माण कराया गया. कई जिलों से लोग यहां सावन में जलाभिषेक करने के लिए आते हैं, लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना के कारण यहां अभी सन्नाटा पसरा हुआ है.
*क्या है मंदिर का इतिहास*
महराजगंज जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर स्थित भारत-नेपाल सीमा से सटा है ऐतिहासिक पंचमुखी ईटहिया शिव मंदिर. यह शिव मंदिर मिनी बाबा धाम के नाम से विख्यात है. एसी मान्यता है कि जो भक्त देवघर स्थित बाबा धाम नहीं जा पाते हैं, वह भक्त पंचमुखी भगवान भोलेनाथ के दर पर ही आता है. इसके कारण यहां नेपाल, बिहार सहित अन्य स्थानों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. सावन में यहां प्रतिदिन 50,000 से अधिक श्रद्धालु जलाभिषेक करने के लिए आते थे, लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना के कारण अब यहां सन्नाटा पसरा हुआ है.
मंदिर के पुजारी ध्यान गिरी ने बताया कि इस ऐतिहासिक शिवलिंग की कहानी निचलौल के राजा बृषभसेन से जुड़ी है. बृषभसेन एक न्याय प्रिय राजा थे और भगवान शिव शंकर के भक्त थे. उनके गोशाला में एक नंदिनी नाम की गाय थी. राजा सुबह और शाम नंदिनी गाय का दर्शन कर उसके दूध का सेवन करते थे. उस समय ईटहिया घने जंगलों से घिरा था. राजा की नंदिनी गाय उसी घने जंगल में घास चरने जाती थी. कुछ दिन बाद नंदिनी गाय ने दूध देना बंद कर दिया. वह जंगल की घनी झाड़ियों में जमीन पर अपना दूध अर्पित करने लगी. राजा को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने उस स्थान की खुदाई कराई. खुदाई में वहां एक पंचमुखी शिवलिंग मिला. इसके बाद राजा प्रतिदिन पंचमुखी शिवलिंग की पूजा अर्चना करने लगे. इससे राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने रत्नसेन रखा.
राजा बृषभ सेन की मृत्यु के बाद उनके पुत्र रत्नसेन निचलौल के राजा बने. वह अपने पिता की तरह अपनी पत्नी स्वर्ण रेखा के साथ प्रतिदिन पंचमुखी शिवलिंग की पूजा अर्चना करने लगे. राजा रत्नसेन के शासनकाल में एक दिन कुछ चोर रात्रि में चोरी करने के उद्देश्य से जा रहे थे. चोर जैसे ही पंचमुखी शिव मंदिर के पास पहुंचे, मंदिर से आवाज आई, गांव वालों जागो चोर चोरी करने आ गए हैं. इससे गांव के लोग जग गए.
मंदिर के पुजारी ध्यान गिरी ने यह भी बताया कि जिस आम के पेड़ की जड़ से पंचमुखी शिव लिंग का प्रादुर्भाव हुआ है वह अपने आप में एक अनोखा वृक्ष था. एक बार बंदर उस आम के पेड़ पर चढ़ गया,लेकिन बहुत प्रयास के बाद भी नीचे नहीं उतर सका, जिससे उस बंदर की भूख प्यास से मृत्यु हो गई, जहां इस बंदर की मृत्यु हुई थी वहा हनुमान मंदिर बनाया गया है. आम का वृक्ष गिर जाने के बाद गड़ौरा के स्वर्गीय चंद्रशेखर मिश्र ने उस स्थान पर 1968- 69 में पंचमुखी शिवमंदिर का निर्माण कराया. इस पंचमुखी शिव लिंग की कथा किसी धार्मिक ग्रंथ में वर्णित नहीं है. यहां दूर दूर से लोग भगवान शिव को जलाभिषेक के लिए आते हैं.
एसडीएम अभय कुमार गुप्त ने बताया कि कोरोना संक्रमण के कारण यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ जलाभिषेक करने की व्यवस्था कराई गई है. इस बार वैश्विक महामारी कोरोना के कारण श्रद्धालुओं की संख्या कम हो गई है. श्रद्धालुओं के न आने से मंदिर के पुजारी और अन्य स्टाफ का खर्च निकलना मुश्किल हो गया है.
Posted By:- Ankush Pal
Coprrespondent,Janmat News.