लखनऊ (जनमत):- लखनऊ में फल पटटी क्षेत्र मलिहाबाद के आम बागवान इन दिनों बेहद चिंतित है। चिंता की वजह यह है कि इस बार जनवरी के महीनें में ही आम के पेड़ों में बौर आ चुके है। इन बौरों को देखकर बागवान परेशान है कि समय से पहले आ चुके बौर से आम की पैदावार काफी कम रहेगी। हालांकि पदम श्री हाजी कलीमुल्लाह ने बागवानों से चिंता न करने की बात कही है। हाजी साहब का कहना है कि जो किसान भाई इस बात से परेशान है कि समय से पहले आम के पेड़ों में बौर आ जाने से आम की पैदावार कम हो जाएगी यह महज एक कोरी अफवाह है। पदमश्री हाजी साहब का कहना है कि 60 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब आम के पेड़ों में जनवरी के महीनें में बौर आये है। पेड़ में बौर आना शुभ संकेत है।
इससे आम की पैदावार कम नहीं होगी बल्कि पैदावार अधिक होगी। इसके अलावा भी आम की फसल को लेकर हाजी साहब ने कई अहम जानकारियों को साझा किया। 80 वर्ष के बुजुर्ग हाजी कलीमुल्लाह साहब खाटी मलिहाबादी है। इस उम्र तक आने से पहले हाजी साहब ने एक ही पेड़ में आमों की कई नस्ल ईजाद कर सबको हैरान कर दिया। या यूँ कह लीजिये कि आम की नई – नई नस्ल को ईजाद करना हाजी साहब का एक जूनून भी है और शौक भी। इनके इसी हुनर के चलते इन्हें पदमश्री से भी सम्मानित किया जा चूका है। इसके अलावा न जाने कितनें सम्मान से हाजी साहब नवाजें जा चुके है। मलिहाबाद स्थित हाजी साहब के घर का एक कमरा इसी बात का गवाह है कि उन्हें कितने सम्मान से नवाजा गया और किन – किन महान लोगों ने इनको सम्मानित किया। हाजी साहब के बारें में बहुत जानकारियां है लेकिन यहाँ जिस मुद्दें को लेकर जिक्र किया जा रहा है हम वापस उसी मुद्दे पर आते है।
दरअसल मुद्दा था आम के पेड़ों में समय से पहले बौर आने का। जनवरी में पेड़ों में बौर आने को हाजी साहब बहुत अच्छा मानते है। पदमश्री कलीमुल्लाह बताते है कि वह 80 वर्ष के है। तकरीबन 20 साल के जब वह रहे होंगे तब इसी समय आम के पेड़ों में बौर आते थे तो किसान भाई काफी खुश हो जाते थे। इसके पीछे की वजह यह थी कि जनवरी के महीनें में बौर आने से आम की पैदावार बहुत अच्छी होती थी और आम भी अच्छा बैठता था। वह कहते है कि 60 साल बाद फिर से पेड़ में इस समय बौर आना किसानों के लिए काफी अच्छा साबित होगा। हाजी साहब ने किसान भाइयों से अपील की है कि वह बिल्कुल परेशान न हो इस बार आम की फसल खूब होगी। पदमश्री कलीमुल्लाह साहब ने बताया कि बौर जब इसी महीनें में आता है तभी आम की फसल खूब बैठती है। साथ में इन्होनें यह भी बताया कि किसी प्राकर्तिक आपदा को छोड़ दिया जाएं तो पेड़ों में बौर आना बागवानों के लिए अच्छा संकेत है।
आम की पैदावार को नुक्सान कैसे पहुंच रहा इसका भी हाजी साहब ने जिक्र किया। पदमश्री हाजी साहब बताते है कि आम के पेड़ जरूरत से ज्यादा घने हो चुके है। घने होने की वजह से जो हवा, धूप और ओस पेड़ों को मिलती थी वह नहीं मिल पा रही है। साथ ही जहरीली दवाओं के छिड़काव से न सिर्फ आम का स्वाद ख़राब हो रहा बल्कि वह जहरीला भी होता जा रहा है। इस समस्या के समाधान के बारें में इन्होनें हुक्मरानों से दरख्वास्त भी की लेकिन किसी ने इनकी नहीं सुनी। हाजी साहब का कहना है कि आम की पैदावार को बढ़ाना है तो सरकार को एक कानून बनाना होगा। कानून के तहत बड़े पेड़ों को काटना होगा और पेड़ ऐसे लगाए कि वह जमीन में लगें न की आपस में लगे। ऐसा करने से पेड़ों को पर्याप्त मात्रा में हवा, धूप और ओस मिलेगी और पैदावार अच्छी होगी। साथ ही आम को भी जहरीला होने से बचाया जा सकेगा।
हाजी साहब एक वो शख्स है जिन्होनें अपने हुनर से मलिहाबाद को ख़ास पहचाई दिलाई। इनके तैयार किये गए रसीलें आमों के स्वाद को क्या आम और क्या ख़ास सभी ने चखा और सराहा भी। उम्र के इस पड़ाव में भी हाजी साहब आम की नई – नई नस्ल ईजाद करने की कोशिश करते रहते है। हालांकि हाजी साहब को मलाल भी है। मलाल इस बात का है कि आम की पैदावार बढ़ाने के लिए उन्होंने हुक्मरानों से कानून बनाने की मांग करते रहे लेकिन उनकी बातों को किसी ने कोई तवज्जों नहीं दी। यह जरूर रहा कि लोग आते रहे और रसीलें आमों का स्वाद लेते रहे लेकिन कानून बनाने के बारें में आँख मूंदें रहे।
Posted By:- Amitabh Chaubey