लखनऊ (जनमत):- कभी कभी वक्त कुछ इस कदर मजबूर कर देता हैं कि जो दूसरों की ज़िन्दगियाँ बचाता हैं वो अपनों कि जिंदगी तक नहीं बचा पता. दरअसल लखनऊ के सिविल अस्पताल में तैनात डॉ. दीपक ने आईसीयू में इलाज करते-करते कोरोना पॉजिटिव हो गएँ, इसके बाद उनके 74 वर्षीय पिता समेत घर के करीब चार सदस्य संक्रमित हो गए। पिता रेलवे से रिटायर्ड अर्जुन चौधरी डायबिटीज और हृदय रोगी थे। उनमें कोरोना के लक्षण महसूस होते ही कोविड अस्पताल से संपर्क किया, पर कोरोना की रिपोर्ट के बिना भर्ती नहीं किया गया। जिसके बाद छह अप्रैल को रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद कोविड सेंटर को फोन किया, पर जल्द भर्ती का आश्वासन देकर टरकाया जाता रहा। पिता की हालात बिगड़ने पर वह बाजार से ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर आए। वहीँ जानकारी कि गए तो पता चला कि कोविड कंट्रोल रूम ने बेड तो दूर एंबुलेंस तक नहीं मुहैया कराई।
ऐसे में वह अपनी कार से पिता को ऑक्सीजन सपोर्ट पर लोकबंधु अस्पताल लेकर पहुंचे, पर आईसीयू में बेड नहीं मिला। इसके बाद सात अप्रैल को निजी मेडिकल कॉलेज में दोपहर 1:30 बजे बेड मिला। हालांकि, यहां भी इलाज की व्यवस्था ध्वस्त मिली। डॉक्टर उनके पिता को देखने में कोताही करते रहे। इलाज के अभाव में बुधवार शाम उनकी मौत हो गई। डॉ. दीपक के मुताबिक पिता के शव के अंतिम संस्कार में भी मुश्किलें आईं। बताया कि बुधवार शाम पांच बजे पिता की मौत हुई, वहीं दाह संस्कार के लिए गुरुवार शाम पांच बजे नंबर आया। उन्होंने कहा कि अब डॉक्टर होते हुए भी अपने पिता को नहीं बचा पाया। इस पर सीएमओ डॉ. संजय भटनागर का कहना है कि डॉक्टर के पिता की मौत की जानकारी नहीं है। कोविड अस्पताल व आईसीयू के बेड बढ़ाए जा रहे हैं। हालत फिलहाल काबू में हैं और स्थिति पर लगातार नज़र रखी जा रही है.
POSTED BY:- ANKUSH PAL..