एटा (जनमत ) :- उत्तर प्रदेश के जनपद एटा के आजादी की जंग का इतिहास शूरवीरों के किस्सों से भरा पड़ा है। इनमें कई ऐसे हैं, जिनकी बहादुरी के चर्चे गाँव धौलेश्वर के बड़े बुजुर्ग जब युवा पीढ़ी को सुनाते हैं तो उनका खून उबाल लेने लगता है।जनपद एटा के गाँव धौलेश्वर का आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान था। इस गाँव के सूरमां बहादुर ¨सह के बारे में बताया जाता है कि अंग्रेजों से लोहा लेते वक्त उनकी गर्दन पर तलवार से प्रहार किया था, लेकिन यह वीर जब तक सांस रही तब तक अपना घोड़ा दौड़ाता रहा और जब गाँव में आकर घोड़ा रुका, तब ही प्राण निकले। ऐसे शूरवीरों के इतिहास से भरा है गाँव धौलेश्वर।
वर्ष 1857 की बात है। स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो चुका था। निधौली कलां क्षेत्र के छोटे से गाँव धौलेश्वर में इस संग्राम की ऐसी अलख जगी कि गाँव के कई वीर आजादी की लड़ाई लड़ने को गाँव के हीरा ¨सह, आशाराम ¨सह, गंगाधर ¨सह, कुंवर खुशहाल ¨सह आदि आगे आ गए थे। अंग्रेजों की सैन्य शक्ति ज्यादा थी, जबकि धौलेश्वरवासियां की सेना में गिने-चुने ही क्रांतिकारी थे। अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए इस गाँव के हीरा ¨सह और बहादुर ¨सह शहीद हो गए थे। गाँव के ब्रजराज ¨सह बताते हैं कि उन्होंने अपने पुरखों से किस्से सुने हैं। आजादी की लड़ाई का शंखनाद धौलेश्वर के एक शिव मंदिर से हुआ था। जहाँ क्रांतिकारियों की पहली बैठक हुई। उस वक्त कर्नल नील अंग्रेजी सेना का नेतृत्व कर रहा था।
एक दिन जब क्रांतिकारी एक ही जगह पर एकत्रित थे तो मुखबिरों ने कर्नल को सूचना दे दी। कर्नल ने अपनी सेना के साथ आकर क्रांतिकारियों को घेर लिया। दोनों ओर से मुकाबला हुआ। इस दौरान क्रांतिकारी बहादुर ¨सह की गर्दन पर तलवार से प्रहार हुआ, जिससे काफी गर्दन कट गई, लेकिन फिर भी वे अपना घोड़ा दौड़ाते रहे। यह घोड़ा भी इतना स्वामी भक्त था कि वह गांव आकर ही रुका और बहादुर ¨सह वही वीरगति को प्राप्त हो गए।
बताते हैं कि यहाँ के चौहानों को स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भूमिका का भारी मूल्य चुकाना पड़ा था। अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों और उनके परिजनों का भरपूर उत्पीड़न किया। यहाँ के लोगों ने अपनी अंतिम सांस तक विदेशी शत्रुओं से मुकाबला किया। कर्नल सीटन ने उस दौरान अपनी किताब में लिखा था, ‘मैं शत्रुओं का सफाया कर एटा जिला मुख्यालय पर आ गया हूँ ।