वाराणसी (जनमत) :- शारदीय नवरात्र की तृतीया तिथि को माँ भगवती के तीसरे स्वरूप मां चन्द्रघन्टा की आराधना का विधान है। मां के इस रूप को चित्रघण्टा भी कहा जाता है। मान्यता है कि माँ के इस रूप के दर्शन पूजन से नरक से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही सुख, समृद्धि, विद्या, सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। इनके माथे पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र बना है। माँ सिंह वाहिनी हैं। इनकी दस भुजाएँ है। माँ के एक हाथ में कमण्डल भी है। काशी में इनका भव्य मंदिर चौक मुहल्ले में स्थित है।
ऐसा कहा जाता है कि जब असुरो के बढ़ते प्रभाव से देवता त्रस्त हो गए तो असुरो का नाश करने के लिए देवी चन्द्र घंटा के रूप में अवतरित हुई और असुरो का संघार कर माँ ने देवताओ के संकट को दूर दिया। वहीं माँ के दर्शन के लिए भोर से भक्तो की लम्बी लाईन हाथो में नारियल चुनरी और माला लेकर घंटो लगी रही। सभी ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मां का पूजन-अर्चन किया। मां के दर्शन के लिए आये श्रद्धालुओं को मास्क लगाकर और सेनिटाइजेशन के बाद ही प्रवेश दिया जा रहा था। सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर परिसर में भारी फोर्स भी तैनात रही।
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