औरैया (जनमत):- नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत प्राथमिक उपचार व देख-रेख से संबंधित जानकारी देने के लिए बुधवार को 100 शैय्या जिला संयुक्त चिकित्सालय में नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य संस्थानों में कार्यरत स्टाफ नर्स एएनएम के दो दिवसीय प्रशिक्षण संपन्न हुआ। प्रशिक्षणार्थियों को बताया गया कि कैसे बच्चे के पैदा होते ही शुरुआती गोल्डन एक मिनट का सदुपयोग करते हुए नवजात को सुरक्षित रखा जा सकता है और उसकी जान बचाई जा सकती है।
दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा अलग अलग बैच में किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण में प्रत्येक प्रखंड से कुल 24 स्टाफ नर्स व एएनएम को प्रशिक्षित किया गया । यह प्रशिक्षण अस्पताल के चिकित्सकों व यूपीटीएसयू संस्था के तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा दिया गया। इस दौरान सिक न्यू बॉर्न केयर इकाई (एसएनसीयू) में ले जाकर प्रैक्टिकल भी दिया गया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ सुनील कुमार वर्मा ने प्रतिभागियों को प्रशिक्षण प्रमाण पत्र प्रदान किया ।सीएमओ ने बताया कि शिशु के जन्म के बाद का एक मिनट गोल्डेन टाइम माना जाता है। इस एक मिनट में बच्चे का रोना जरूरी है। उन्होंने कहा कि शिशु मृत्यु का सबसे बड़ा कारण सही समय पर उपचार एवं जानकारी का आभाव है। अगर जन्म के तुरंत बाद शिशु की सही देखभाल और उपचार की जाए तो निश्चित तौर पर शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी। अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ शिशिर पुरी ने कहा कि मानव जीवन को खुशहाल बनाने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। शिशु किसी भी परिवार में खुशी का अभिन्न अंग होता है। शिशु मृ़त्यु दर में कमी लाने के लिए सेवा अच्छी होनी चाहिए। बेहतर सेवा के लिए जानकारी जरूरी है।
प्रशिक्षण देते हुए मुख्य प्रशिक्षक डॉ उत्कर्ष ने कहा कि बर्थ एसफिक्सिया या जन्म श्वासरोधक एक ऐसी दशा हैं जिसमें नवजात पैदा होने के बाद न तो रोता है और न ही सांस लेता हैं। यह बच्चे के मस्तिष्क में आक्सीजन की कमी के कारण होता हैं। आक्सीजन की कमी होना मुख्तय: बच्चे के मुंह में गंदा पानी चले जाने, कम वजन का होने, समय से पूर्व पैदा होने, या जन्मजात दोष होने की वजह से हो सकती है। इस दौरान यदि नवजात को तुरंत उचित देखभाल नहीं मिलती हैं तो उसकी जान जाने का भी खतरा हो सकता हैं।मुख्य प्रशिक्षक डॉ जयबीर ने बताया नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम का उद्देश्य शिशु परिचर्चा और पुनर्जीवन में स्वास्थ्य कार्यकर्ता को प्रशिक्षित करना है। इस कार्यक्रम का शुभारंभ जन्म के समय परिचर्चा हाइपोर्थर्मिया से बचाव, स्तनपान शीघ्र आरंभ करना तथा बुनियादी नवजात पुनर्जीवन के लिए किया गया है।
वरिष्ठ सलाहकार व मुख्य प्रशिक्षक डॉ जसवंत रतनाकर ने बताया नवजात में जन्म श्वासरोधक होने का मुख्य कारण बच्चे के मुंह में गंदा पानी के चले जाने के कारण होता हैं। उन्होने बताया कि ऐसे में इस समस्या से बचाव के लिए बच्चे कि स्थिति बदल देनी चाहिए ताकि बच्चा उल्टी कर सकें और गंदा पानी बाहर निकल सकें।यूपीटीएसयू संस्था के विशेषज्ञ डॉ गौरव ओझा ने बताया जन्म के शुरुआती एक घंटे के भीतर शिशुओं के लिए स्तनपान अमृत समान होता है। यह अवधि दो मायनों में अधिक महत्वपूर्ण है। पहला यह कि शुरुआती दो घंटे तक शिशु सर्वाधिक सक्रिय अवस्था में होता है। इस दौरान स्तनपान की शुरुआत कराने से शिशु आसानी से स्तनपान कर पाता है। सामान्य एवं सिजेरियन प्रसव दोनों स्थितियों में एक घंटे के भीतर ही स्तनपान कराने की सलाह दी जाती है। इससे शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। जिससे बच्चे का निमोनिया एवं डायरिया जैसे गंभीर रोगों में भी बचाव होता है। इस अवसर पर मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता अखिलेश कुमार सहित अन्य स्टाफ भी उपस्थित रहा ।
Reported By- Arun Kumar
Published By- Ambuj Mishra