गोरखपुर/जनमत। गोरखपुर विश्व शांति मिशन के तत्वावधान में प्रति माह की भांति इस माह भी अंतिम रविवार को कवि गोष्ठी एवं शेरे नशिस्त का आयोजन किया गया जिसमें कवियों ने अपनी रचनाओं से उपस्थित लोगों को शराबोर कर दिया । आज एक नई परंपरा का शुरूआत किया गया जिसमें शमा फरमाएं की जगह टोपी पहनाएं शब्द इस्तेमाल किया गया क्योंकि पुराने जमाने में जिसके सामने शमा रख दी जाती थी उसे गोष्ठी में अपनी रचना पढ़नी पड़ती थी। अब शमा का जमाना चला गया है इसलिए पगडी़ या टोपी पहनाने की परंपरा विश्व शांति मिशन में चालू की गई और जिस कवि को टोपी पहना दिया जाएगा उसे रचना पढ़ना होगा। सभी ने इस पर अपनी सहमति प्रदान किया।
सर्वप्रथम प्रेमलता रासबिंदू ने सरस्वती वंदना का पाठ किया तत्पश्चात नवोदित कवि सूरज राम आदित्य ने अपनी रचना “जब-जब पाप बढे धरती पर अलख जगाना पड़ता है”सुना कर गोष्ठी का विधिवत शुभारंभ किया, नीलकमल गुप्त विक्षिप्त ने अपनी रचना “लज्जित नहीं जो पराजय से उसे क्या ज्ञात होगा भारत” सुना कर वाहवाही लूटी तबपश्चात संचालक के आवाहन पर बद्रीनाथ विश्वकर्मा सांवरिया ने अपनी रचना “कितने दुल्हन के बिक गई जेवर इस खाना खराब के चलते”सुना कर बहुत कुछ सोचने को मजबूर किया…
प्रेमलता रासबिंदु ने अपनी रचना “राष्ट्र का सम्मान हैं बेटियां, जीवन का अभिमान है बेटियां” सुना कर गोष्टी को नई ऊंचाई प्रदान किया तत्पश्चात संचालक रामसमुझ साँवरा ने अपनी रचना “मैं भूल ना पाऊंगा एहसान कभी तेरा, झूठी ही तसल्ली दो ताज़ा है जख्म मेरा” सुना कर बहुत कुछ सोचने को मजबूर किया।
इसके बाद कौशल चंद्र उपाध्याय ने संचालक के आह्वान पर अपनी रचना पढा़ “कहे केजरीवाल जेल से दिल्ली के जनता से, बाहर नाहीं करिहा सत्ता से” इसके बाद अरविंद अकेला गोरखपुरी ने अपनी रचना “नेहिया के डोरी धरवले रहिय माई, ज्ञान के जोतिया जरौले रहिय माई” सुना कर भोजपुरी की उपस्थिति दर्ज कराई और निर्मल कुमार गुप्त ने अपनी रचना “अपने मूल जड़ से नाता तोड़ मुरझाइल जाता री पलयी, परिवार में विघटन होत देख रोवाता रे मनई”सुना कर वर्तमान परिस्थितियों पर कुठाराघात किया, अवधेश शर्मा नंद ने अपनी रचना “लगा बाजार झूठों का सही पहचान किसको है, बिके अब सत्य भाजी भाव इसका भान किसको है” सुना कर वर्तमान परिस्थितियों के बारे में बहुत कुछ बयां कर दिया।
विश्व शांति मिशन के अध्यक्ष अरुण ब्रह्मचारी ने अपनी रचना “घर में आधी आधी रोटी बाहर एडी़ तक की धोती, भेद इनका जब खुलता है बड़ा अवसाद होता है” सुना कर वर्तमान परिपेक्ष में दिखावा करने वालों पर कुठाराघात किया। मुख्य अतिथि चंद्रगुप्त प्रसाद वर्मा अकिंचन ने श्रृंगार से ओतप्रोत रचनाएं सुना कर तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि व संस्कृत के विद्वान डॉक्टर हनुमान प्रसाद चौबे ने सभी की रचनाओं की समीक्षा करते हुए अपनी रचना “अगुआ वही समाज का दर्पण जैसा होय, देखे रूप समाज का जब भी चाहे कोय” सुनाया। अंत में विश्व शांति मिशन के अध्यक्ष अरुण ब्रह्मचारी ने सभी आए हुए आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया, गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ कवि रामसमुझ सांवरा द्वारा किया गया।
Report by – Gaurav Upadhayay
Published by – Manoj Kumar