अपनी प्रेरणास्पद एवं ऊर्जामयी कविताओं से हिंदी पाठकों के बीच एक खास जगह बना चुके कवि सुयश कुमार द्विवेदी दिल्ली में सहायक लोक अभियोजन अधिकारी के रूप में कार्यरत है। सुयश की कविताओं में भाषा की सहजता, सरलता एवं शब्दों के चयन की उत्कृष्टता उन्हें एक साहित्य जगत में एक अलग स्थान प्रदान करती है। आइये सुयश की कविताओं से रुबरु होते है-
” रे पथिक!”
रे पथिक!क्यूं भ्रमित है तू?
सूझता तुझे,कोई राह क्यूं नहीं,
जान ले,हर राह का गंतव्य होता,
फिर भी चलने में,तेरी है चाह क्यूं नही?
चिंतन,मनन की गुत्थियों में,
आखिर उलझा रहता क्यूं है?
प्रारब्ध से ही चाह मत तू सफलता
पराजय की बात ही,तू करता क्यूं है?
रोक खुद को,दे टिका
मानक नये तुझे छोड़ना है,
अपने जुनून को,धैर्य को
श्रम की हवा दे,
पल पल को अपने अनवरत,
तुझे जोड़ना है;
अभीष्ट पर सदा,केंद्रित रखना खुद को,
लक्ष्य की बाधाओं से है,
लड़ना तुझ को,
कदम तेरे ना डिगे,तेरे सफर में देखना,
विजय की तो अब चमक है,
तेरे नज़र में देखना,
है चूमना आकाश की,
ऊचाइयों को भी तुझे,
हर शिखर जो भी दिखे,
उसको छूना है तुझे,
बस जान ले,पहचान ले
पहले अपनी शक्ति को,
फिर कौन है जो ललकारे?
तेरी साधना व भक्ति को
क्या जानता है?कौन है तू,
कुछ बोल तो,क्यों मौन है तू?
जिसने जाना स्वयं को,
वही सिद्ध मानव;
डूबे सब है भुलावे में,
कहते मैं प्रसिद्ध मानव;
रे पथिक!निज पथ पे,
छोड़ दे कोई निशान,
देखे उसको सब कहे,
कौन था गया इंसान?
पद चिन्ह ही तेरे खुद कहे,
तेरी कहानी संघर्ष की,
होते विरले व्यक्ति ऐसे,
जो गाथा है इक हर्ष की…
सुयश कुमार द्विवेदी
सहायक लोक अभियोजन अधिकारी
दिल्ली
Email -suyashdubey85@gmail.com