इन दिनों हिंदी साहित्य जगत में एक युवा कवि की रचनाओं ने धूम मचा रखी है जिनका नाम है सुयश कुमार द्विवेदी…. इनकी ओजेस्वी और प्रेरणादायक कवितायेँ जहाँ हृदयविदारक है वहीँ कहीं न कहीं आम जनमानस से खुद को जोड़ने का प्रयास भी करती है, आईये रुबरु होतें है इनकी कृतियों से —
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कंटीली,पथरीली भले यह राह है तेरी,
पर जब विजय ही,यदि चाह है तेरी,
तो बढ़ना ही होगा,तुझको इस सफर में,
छोडना इसे मत अधर में,छोडना इसे मत अधर में।।
स्वपन तूने जो जिया है जिंदगी भर,
आंधियो से तू लड़ा है,चला है तू मुश्किलों पर,
डगमगाया तू नही है,जब लहर में
छोडना इसे मत अधर में,छोडना इसे मत अधर में।।
रात कितनी ही घनी तूने बितायी,
दुश्मनों की एक भी तुझपे चल न पायी,
ठीक से सोया नही तू,जब आठों पहर में,
छोड़ना इसे मत अधर में,छोडना इसे मत अधर में।।
काँटो के साये में तूने साँस ली थी,
अनगिनत कठिनाईया तुझे फ़ांस ली थी,
बच के उनसे निकला तू है, चल पड़ा अपने डगर पे,
छोड़ना इसे मत अधर में,छोड़ना इसे मत अधर में।
जीत ही विकल्प इक है,जीतने की चाह बस कर,
दूसरा कुछ सोच मत,अन्य की परवाह मत कर,
जब है ठाना,तब है जीता, सोच मत अगर मगर में,
छोड़ना इसे मत अधर में,छोड़ना इसे मत अधर में।
इन घनेरे बादलों को देख मत,छट जाएंगे ये,
रास्तों की मुश्किलों से लड़ तो बस,खुद हट जाएंगे ये,
देख गांव से निकल के,कैसे तू अब है नगर में,
छोड़ना इसे मत अधर में,छोड़ना इसे मत अधर में।