बॉलीवुड(Janmat News): पाकिस्तान की सूचना और प्रसारण पर प्रधानमंत्री की विशेष सहायक डॉ. फिरदौस आशिक अवान ने बयान जारी करते हुए कहा है कि कोई भी भारतीय फिल्म पाकिस्तान में नहीं दिखाई जाएगी, क्योंकि पाकिस्तान भारत के साथ राजनायिक और सांस्कृतिक संबंधों को कम करने के लिए कदम उठा चुका है।
अनुच्छेद 370 हटाने के बाद का असर : डॉ. फिरदौस ने कहा कि कश्मीरियों के सपोर्ट में पाकिस्तान हर तरह के विकल्पों का प्रयोग करेगा। उन्होंने इंटरनेशनल मीडिया से भी मांग की है कि कब्जे वाले कश्मीर में बिगड़ती स्थिति का जायजा लेने जाए। साथ ही पाकिस्तानी मीडिया से कश्मीरियों की दुर्दशा को उजागर करने कहा है।
एयर स्ट्राइक के समय भी लगा था बैन
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इसके पहले फरवरी 2019 में भारतीय सेना की एयर स्ट्राइक के बाद भी पाकिस्तान ने बॉलीवुड फिल्मों की रिलीज पर पाकिस्तान में प्रतिबंध लगा दिया था। तब पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री चौधरी फवाद हुसैन ने इसका एलान किया। पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री देश में भारतीय फिल्मों के साथ-साथ ‘मेड इन इंडिया’ विज्ञापनों के बहिष्कार की घोषणा की थी। पुलवामा अटैक के बाद भारत ने पाकिस्तानी एक्टर्स और आर्टिस्ट्स को बैन कर दिया और अपनी कई फिल्मों को वहां रिलीज करने पर रोक लगा दी।
आम नागरिक ने लगाई थी याचिका
एक पाकिस्तानी नागरिक शेख लतीफ ने 21 फरवरी 2019 को लाहौर हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई थी। जिसमें कहा गया था कि भारत के साथ होने वाले व्यापार और भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन पर पूरी तरह बैन लगाया जाए। याचिका के संबंध में शेख लतीफ ने कहा था कि आयात नीति 2016 के तहत भी यह आदेश दिया गया था कि भारतीय फिल्मों और अन्य सामग्री के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया जाए।
नवाज शरीफ ने हटवाया था बैन
शेख के अनुसार- 31 जनवरी 2017 में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सूचना मंत्रालय की एक अधिसूचना के माध्यम से घोषणा करते हुए पाकिस्तान में भारत सहित सभी अंतरराष्ट्रीय फिल्मों के प्रदर्शन को पाकिस्तानी फिल्म और सिनेमा उद्योग के पुनरुद्धार के लिए जरूरी बताते हुए बैन हटवा दिया था। इस मुद्दे पर लतीफ का तर्क है कि वह अधिसूचना गैरकानूनी थी क्योंकि इसे संघीय कैबिनेट द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था, जिसका अनुमोदन किया जाना सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत अनिवार्य होता है।
सख्त कार्रवाई की सरकार से की थी मांग
लतीफ ने मांग की थी कि टेलीविजन चैनलों पर भारतीय सामग्री के प्रसारण के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए संघीय सरकार को सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया था कि वह जनवरी 2017 की लागू की गई अधिसूचना को रद्द करे और प्रशासन को निर्देश दे ताकि भारतीय फिल्मों और अन्य सामग्री की प्रदर्शनी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जा सके।
2013 में भी लगाया था प्रतिबंध
2013 में भी लाहौर हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश खालिद महमूद ने विवादास्पद टीवी टाॅक शो के होस्ट मुबशीर लुकमान द्वारा दाखिल की गयी याचिका पर अंतरिम आदेश जारी किया था। लुकमान पूर्व फिल्म निर्माता और भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते रहे थे। लुकमान ने दावा किया कि पाकिस्तानी नियमों के तहत पूरी तरह भारत में फिल्माई गई और किसी भारतीय द्वारा प्रायोजित फिल्म को देश में नहीं दिखाया जा सकता। उन्होंने आरोप लगाया कि पाकिस्तान में भारतीय फिल्में दिखाने के लिए प्रायोजकों की पहचान बदलने के लिए ‘फर्जी दस्तावेजों’’ का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में एक अदालती आदेश भी पेश किया था।
पाकिस्तान में मात्र 150 के करीब सिनेमाघर
ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन के मुताबिक पाकिस्तान में महज 150 से 170 सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स हैं। भारत में यह आंकड़ा 3700 के करीब है। बेहतर कमाई करने वाली फिल्मों से 15 से 25 करोड़ रुपए तक का टर्नओवर वहां के डिस्ट्रीब्यूटर्स और एग्जीबिटर्स का होता है। डिस्ट्रीब्यूटर अक्षय राठी और राज बंसल बताते हैं कि वहां फिल्में न भेजने से हम पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला। हां भारतीय फिल्में बैन करने से उनको जरूर बड़ा घाटा होगा, क्योंकि उनका एग्जीबिशन नेटवर्क पूरी तरह इंडियन फिल्मों पर डिपेंड है। वहां सालभर में महज 10 से 15 फिल्में बनती हैं। इंडियन मेकर्स को वहां फिल्में भेजने पर चार से आठ करोड़ रुपए की ही कमाई होती है।