शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में गैर-हिंदी भाषी और हिंदी भाषी प्रदेशों के लिए तीन भाषाओं का फॉर्मूला

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चेन्नई/नई दिल्ली(जनमत). राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में तीन भाषाएं पढ़ाए जाने का प्रस्ताव रखा गया है। दक्षिण के राज्यों खासकर तमिलनाडु में इसका विरोध शुरू हो गया है। द्रमुक नेता एमके स्टालिन ने कहा कि यह देश को बांटने वाला प्रस्ताव है। उधर, तमिलनाडु सरकार ने भी कहा है कि यह हिंदी को थोपे जाने का कदम है और इसे खत्म किया जाना चाहिए।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा- स्कूलों में तीन भाषाओं के फॉर्मूले का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि वे हिंदी को अनिवार्य विषय करना चाहते हैं। भाजपा सरकार का असली चेहरा सामने आना शुरू हो गया है।

स्टालिन ने कहा- प्रस्ताव कभी स्वीकार नहीं करेंगे
स्टालिन ने कहा- प्री-स्कूल से 12वीं कक्षा तक हिंदी पढ़ाए जाने का प्रस्ताव चौंकाने वाला है और यह देश का विभाजन कर देगा। 1968 से राज्य में केवल दो भाषाओं के फॉर्मूले पर शिक्षा नीति चल रही है। तमिलनाडु में केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। हिंदी पढ़ाए जाने को हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे। हमें लगता है कि केंद्र की भाजपा सरकार एक और भाषाई विवाद को जन्म नहीं देगी।

कमल हासन बोले- भाषा थोपी नहीं जानी चाहिए
मक्कल निधि मय्यम के प्रमुख कमल हासन ने कहा- चाहे भाषा हो या फिर कोई परियोजना, अगर हमें यह पसंद नहीं है तो इसे थोपा नहीं जाना चाहिए। हम इसके खिलाफ कानूनी विकल्प की तलाश करेंगे। वहीं तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री केए सेनगोट्टइयन ने कहा कि दो भाषाओं के फॉर्मूले में कोई बदलाव नहीं होगा। हमारे राज्य में केवल तमिल और अंग्रेजी भाषा की ही शिक्षा दी जाएगी।

सरकार ने कहा- यह रिपोर्ट है, प्रस्ताव नहीं
मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा- कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की है। यह कोई नीति नहीं है। लोगों की राय को ध्यान में रखा जाएगा। यह गलतफहमी है कि रिपोर्ट को पॉलिसी बना दिया गया है। किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।

यह है शिक्षा नीति का ड्राफ्ट
शिक्षा नीति का मसौदा वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन ने तैयार किया है। मसौदा शुक्रवार को सामने आया। मसौदे में प्रस्ताव दिया गया- तीन भाषाओं के फॉर्मूले को पूरे देश में लागू किए जाने की जरूरत है। 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति शुरू होने के बाद ही यह फॉर्मूला अपनाया गया था और यह जारी रहेगा। रिसर्च में सामने आया है कि 2-8 वर्ष की आयु के बच्चे भाषाएं जल्द सीखते हैं। बहुभाषी फॉर्मूला बच्चों के लिए काफी फायदेमंद हैं। इसलिए बच्चों को शुरुआती चरण से ही तीन भाषाओं की शिक्षा दी जाए। जो बच्चे अपनी कोई एक भाषा बदलना चाहता है, वह ऐसा छठवीं कक्षा में कर सकता है।

इसलिए है विवाद
मसौदे में प्रस्ताव दिया गया है कि हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी-अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य क्षेत्र की भाषा की शिक्षा दी जाए। वहीं, गैर-हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी और अंग्रेजी के अलावा क्षेत्रीय भाषा की शिक्षा दी जाए। इसी प्रस्ताव का दक्षिण की राजनीतिक पार्टियां विरोध कर रही हैं।

 

 

Posted By: Priyamvada M