देश/विदेश (जनमत) :- नेपाल और भारत के नेतृत्व के बीच मतभेद के बावजूद सीमा विवाद का स्थायी समाधान तलाशने के लिए दोनों देशों के पास बातचीत के अलावा कोई विकल्प नहीं है। नेपाल के रक्षा विशेषज्ञों और पत्रकारों ने हालिया तनाव पर राय देते हुए कहा कि ओली सरकार ने राष्ट्रवाद के नाम पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए विवादित नक्शा पेश किया है। उनके इस कदम से नेपाल और भारत के रिश्तों में इतनी तल्खी आई है। ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार ने शनिवार को देश के निचले सदन से भारतीय हिस्सों लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपने देश का क्षेत्र दिखाने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करा लिया।
उसके इस अप्रत्याशित कदम ने साबित कर दिया कि वह भारत के साथ दशकों पुराने सांस्कृतिक, राजनीतिक और व्यापारिक संबंधों को अब लंबे समय तक पुराने ढंग से भाव नहीं देगा। घरेलू राजनीति, चीन से मिल रहे मजबूत आर्थिक समर्थन और भारत की शालीनता ने नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को दशकों पुराने सीमा विवाद को आगे बढ़ाने की हिमाकत करने की हिम्मत दी।नेपाल में 2008 से 2011 तक भारतीय राजदूत रहे राकेश सूद का कहना है कि दोनों ही पक्षों ने अपने संबंधों को इतने खतरनाक स्तर पर आने की छूट दी।
भारत को काठमांडो के साथ संपर्क साधना चाहिए था क्योंकि वह नवंबर से ही इस मुद्दे पर बातचीत पर जोर दे रहा था। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि हमने संवेदनशीलता नहीं दिखाई और अब नेपाली खुद को ऐसे दलदल में पा रहे हैं जहां से उनका निकलना मुश्किल होगा।
Posted By:- Ankush Pal
Correspondent, Janmat News.