…….गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त… हमी अस्तो…. हमी अस्तो….हमी अस्त” इसका अर्थ है की अगर धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं …. भारत का ताज और धरती की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर ने शायद कभी सुकून महसूस किया हो। इसके दामन में शायद ही कोई सुकून की नींद सो पाया हो। आखिर देश के ही इस हिस्से के हालात इतने खराब कैसे हो गये, कहीं न कहीं हमारे देश की सियासत भी इसकी उतनी ही जिम्मेदार है जितना की घाटी का आतंकवाद। कहीं न कहीं हमारी सरकार ने कश्मीर से अपने जुड़ाव को कई धराओं में इस तरह धराशाही कर दिया कि आज वो किसी और से नहीं बल्कि अपनी आत्मा से आजादी मांग रहा है। अभी हाल ही में कश्मीर में राज्य पाल शासन लगाया गया, भाजपा-पीडीपी की की गठबंधन वाली सरकार गिर गयी और एक बार फिर कश्मीर अस्थिरता में चला गया।
कश्मीर के लोग आखिर अपने ही विकास में बाधक क्यों बनते जा रहें हैं यह भी एक बड़ा प्रश्न है। जहां एक ओर भारत में सभी राज्यों में एक स्थिर सरकार है और जहां निवास करने वाली प्रत्येक ईकाई को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है वहीं कश्मीर हमारे साथ होकर भी हमसे उतना ही जुदा है, जितना की हमारी परछाई हमारे साथ होने के बावजूद भी हमारे साथ नहीं होती। कहीं न कहीं इसके लिए हमारे देश के निर्माता भी जिम्मेदार यहां पर धारा-370 का उल्लेख करना भी उतना ही जरुरी है जितना की भारत की अखंडता के बारे में बोलना। इस धारा के अन्तर्गत कई ऐसे प्रावधान है जो कि कश्मीर को मूल भारत से अलग रखने के लिए काफी है।
कश्मीर का मुद्दा हल करने के लिए आखिर हमें पाकिस्तान से ही बात करने की जरुरत क्यों हो जाती है। आखिर कश्मीर की राजनीति में पाकिस्तान का इतना दखल कब और कैसे हो गया यह भी एक बड़ा सवाल है। आखिर कश्मीर के लोग उस पाकिस्तान को इतना क्यों महत्व देते है कि बिना पाकिस्तान के दखल के वादियों मंे शान्ति नहीं आ सकती। आखिर कश्मीर के लोग दोयम दर्जे के नागरिक क्यों बनकर रह गयें हैं। यह भी एक बड़ा सवाल है। कश्मीर में सेना पर पत्थरबाजी हो रही है, देश के जवान आखिरकार देश के ही नागरिकों को निशाना बनाने को मजबूर है। आज कश्मीर एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है जहां वो देश के साथ होने के बावजूद भी अलग-थलग सा पड़ गया है। अगर ऐसा नहीं हेाता तो कश्मीर का मुद्दा समाप्त हो चुका होता।
घाटी में जहां एक ओर वहां निवास करने वाले लोगो को आये दिन कफ्र्यू से दो चार होना पड़ता है वहीं हमारे देश की सेना अपने देश के नागरिकों पर बंदूक तानने को मजबूर है। हालांकि यह कोई नहीं बात नहीं है कश्मीर में शान्ति तब तक नहीं आयेगी जब तक वहां कि सियासत में पाकिस्तान का झुकाव नहीं खत्म होता है। पाकिस्तान आखिर यहां कि सियासत में इतनी दख्ल क्यों दे रहा है और यहां के लोग पाकिस्तान को ही अपना खुदा क्यों मानने लगे है यह भी हमारी विफलता को दर्शाता है, जब तक कश्मीर में शान्ति के साथ स्थिरता नहीं आती और यहां के लोगों को जब देश और देशभक्ति में विश्वास नहीं जगेगा तब तक कश्मीर वास्तव में कश्मीर नहीं बन सकता है। इसके साथ ही उन धाराओं को भी खत्म करने की आज नितान्त आवश्यकता है जिन धाराओं के चलते कश्मीर आज इस अशान्ति की धाराओं में चला गया है इसे भी इसे भी अगर खत्म नहीं किया जा सकता है तो सिथिल जरुर करना चाहिए। चूंकि एक ही देश में दो विधान कहीं न कहीं असंतोष पैदा करने वाला है। इसके साथ ही इस बात पर भी जोर देने की आवश्यकता है कि कहीं कश्मीर के ये हालात आने वाले दिनों में और भी खराब न हो जाये। चूंकि कश्मीर का मुद्दा भारत का आंतरिक मुद्दा तो है ही साथ में देश के अन्दर पाक परस्त भावानाओं को भी समाप्त करने की भी जरुरत है साथ ही अब दृढ़ता के साथ कश्मीर को भारत के साथ चलाने के लिए गम्भीर कदम उठाने ही होंगें चूंकि जो मुद्दा बातचीत से हल नहीं हो सकता है वो मुद्दा दूसरे तरीकों से जरुर हल किया जा सकता है।
अंकुश पाल
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