इस समय देश में #MeToo कैंपेन को लेकर जहाँ बहस छिड़ी हुई है और कोई इसके साथ है तो कोई इसे महज एक तरह का “फैशन” बता रहा है. वहीँ #MeToo कैंपेन की ही देन है की आज हमारे सामने से ऐसे कई अनजाने पहलुओं से भी पर्दा उठ रहा है जो अब तक लोगो की जानकारी से बाहर थे… कहीं न कहीं ये राज़ उन मजबूरियों और डर के सायों के तले घुट रहें थे जिनकी सांसे तो चल रही थी पर जिंदगी एक बोझ तले सिसकियाँ ले रही थी. जहाँ इस अभियान की वजह से महिलाओं में अपनी आपबीती बताने और अपने साथ हुई ज्यादतियों को बोलने की ताक़त दी वहीँ उन चेहरों को भी लोगो की नजरो के सामने लाकर खड़ा कर दिया जो अभी तक बेदाग नज़र आते थे. जहाँ इस अभियान से पहले तक हमें बॉलीवुड की चकाचौन्द ही नज़र आती थी वहीँ इस अभियान ने इसके पीछे की काली सच्चाई को सबके सामने उजागर किया है.
वहीँ इस कैंपेन ने कई ऐसे चौका देने वाली घटनाओ से भी पर्दा उठाया जो अभी तक वक़्त की गहराईयों में राज़ के रूप में दफन थीं. जिसे #MeToo नाम की चिंगारी ने जिंदा कर दिया. इस कैंपेन ने यौन उत्पीड़न के मामले में कई बॉलीवुड सितारों का पर्दाफाश कर दिया है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच मानहानि और केस दर्ज करने का सिलसिला भी जारी है। हाल ही में #MeToo कैंपने के जरिए बॉलीवुड की कई अभिनेत्रियों और प्रोड्क्शन हाउस में काम करने वाली महिलाओं ने खुद पर हुए यौन उत्पीड़न का खुलासा किया है। जहाँ अभिनेत्री तनुश्री दत्ता – नाना पाटेकर के विवाद ने इस अभियान की शुरवात बालीवुड में की थी .जिसके बाद तो मानो पीडितो की बाढ़ सी आ गयी.
बालीवुड इंडस्ट्री में संस्कारो के प्रमुख कहे जाने वाले संस्कारी बाबूजी आलोक नाथ पर राइटर और प्रोड्यूसर विंता नंदा ने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया …. विंता ने 19 साल पहले हुई घटना को बताते हुए अपने फेसबुक अकाउंट पर लंबा-चौड़ा पोस्ट लिखा। इसमें उन्होंने कहा, ‘एक बार मैं आलोक नाथ के घर पर हुई पार्टी में शामिल हुई । वहां से देर रात दो बजे के करीब घर जाने के लिए निकली। ड्रिंक में कुछ मिला दिया गया था। आलोक नाथ ने मुझे घर छोड़ने की पेशकश की। जिसके बाद उन्होंने मेरे साथ “वो” किया. जिसके बाद बाबूजी पर भी आरोपों का सिलसला सा शुरू हो गया. इसके बाद इस मामले में अब तक कैलाश खेर, विकास बहल, साजिद खान, बॉलीवुड के शो-मैंन सुभाष घई के खिलाफ यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगा है. जिसपर उन्होंने इसे एक तरह का “फैशन” बता दिया है.
हालाँकि यह आग कहाँ तक पहुचती है और कितने “दाग –बेदाग़” लोगो को अपनी आगोश में लेती है यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा लेकिन इस अभियान ने इतना तो साफ़ कर दिया की हकीकत पर पर्दा डाला जा सकता है लेकिन सच्चाई को दबाया नहीं जा सकता. वहीँ जो महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हैं और अपने दर्द को पूरी हिम्मत के साथ साझा कर रहीं हैं कहीं न कहीं यह भी बहादुरी की एक मिसाल है. चुकी हमारे समाज में महिलाओं को हमेशा दबाया गया है और कई परिस्थितियों में उनको एक “चीज” से ज्यादा कुछ नहीं समझा गया लेकिन यह अलग बात हैं की यहीं समाज नवरात्रों में माँ देवी की पूजा ज़रूर करता है और बंद कमरों उसी देवी स्वरुप महिला का उत्पीडन करने से बाज भी नहीं आता है.
इस अभियान इतना तो ज़रूर साफ़ कर दिया है की महिलाओं को अब दर्द सहने की बिलकुल भी ज़रुरत नहीं है चाहे वो दर्द उस समय का हो जब उनके साथ शारीरिक उत्पीडन किया गया हो या फिर वर्तमान समय में उनपर इसके बाद यह समाज उँगलियाँ उठाये की यह बात कहाँ तक सच है और कहाँ तक झूठ. दूसरी तरफ सच्चाई यह भी है की चाहे हम कितना भी पीड़ित महिलाओं की बातों को समझने का प्रयास करें लेकिन उनके उस दर्द की इकाई को भी हम नहीं समझ सकते खास तौर से हमारा पुरुष प्रधान समाज तो बिलकुल भी नहीं समझ सकता है चुकी जब एक महिला अपने घर से निकलती है और आम रास्ते से लेकर अपने घर तक पहुचने तक कितनी “नजरो” का शिकार होती है यह वही महसूस कर सकती है. रास्तों पर चलते हुए अपने ही कपड़ो को संभालना, दुपट्टे की तरफ ध्यान दिए रहना और न जाने कितने ही कानून केवल महिलाओं के लिए ही बने हैं और अगर किसी वक़्त इनके साथ कुछ गलत घट जाता है तो हमेशा गलती “इन्ही महिलाओं” की क्यों होती है. सच तो यह है की दुष्कर्म या फिर शारीरक उत्पीडन के शिकार/ पीड़ित के दर्द को हम और आप बिलकुल भी महसूस नहीं कर सकते चुकी बलात्कार केवल एक शरीर का ही नहीं होता बल्कि उस आत्मा का भी होता है जो इस घटना के बाद मृत ही हो जाती है और बाकी शरीर बचा रहता है उस झकझोर देने वाली हकीकत के साथ जो उसे जीवन भर कुरेदती रहती है की ……….. क्या थी गलती मेरी?
वहीँ दूसरी तरफ #MeToo कैंपेन की वास्तव में सराहना करनी चाहिए चुकी यही एक वजह हैं की महिलाओं ने अपनी हदों की ज़ंजीरो को तोड़कर सारी बंदिशों को भुलाकर उन सभी डर और शर्म दीवार को फांदकर सच्चाई बताई या फिर अपने साथ हुए शारीरिक उत्पीडन को जगजाहिर कर दिया यह भले ही उन लोगो पर आक्षेप लगाने वाला क्यों न हों पर सदियों से दबी महिलाओं की आवाज़ को मजबूत करने वाला ज़रूर है. मैं उन सभी महिलाओं और पीडितो भावनाओ का आदर करता हूँ जिन्होंने अपना सिर उठाकर और आरोपियों की निगाहों में निगाहें डालकर उनखी असली चेहरे से हम सबको रुबरु करवाया है. बड़े कुसूरवार हैं ये दुनिया के हमदर्द , डूबते को हाथ भी नहीं देते और संभलते को साथ भी नहीं देते…….! और जब कोई उठाता है आवाज…तो साथ होने का एहसास भी नहीं देते……….||
अंकुश पाल
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