देश/विदेश (जनमत) :– उच्चतम न्यायालय ने एक मामले को लेकर बड़ा फैसला दिया है. न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि आरक्षित वर्ग के लोगों को छूट या प्राथमिकता संबंधी नीति बनाना पूरी तरह से राज्य सरकार की स्वेच्छा पर निर्भर है। वहीँ इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा है आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी, जिन्होंने उम्र सीमा में छूट का लाभ लिया हो वह मेरिट लिस्ट में अधिक अंक प्राप्त करने के आधार पर सामान्य श्रेणी में शामिल करने का दावा नहीं कर सकता।
इसी के साथ ही सर्वोच्च न्यायलय ने अपने आदेश में कहा है कि आरक्षण एक समर्थ बनाने वाले प्रावधान है। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह प्रश्न था कि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अगर प्रारंभिक परीक्षा में उम्र सीमा में छूट का लाभ लेता है तो क्या वह फाइनल मेरिट में सामान्य श्रेणी में शामिल होने का दावा कर सकता है? आरक्षण किस तरीके से दिया जाए इस संबंध में राज्य सरकार समय-समय पर आदेश पारित करती है।
याचिकाकर्ता के अनुसार आरक्षित वर्ग का होने के नाते उसने प्रारंभिक परीक्षा में उम्र में छूट का लाभ लिया था। उसका कहना था कि प्रारंभिक और फाइनल परीक्षा अलग-अलग है। ऐसे में मेरिट लिस्ट में अधिक अंक प्राप्त करने पर उसे सामान्य श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए। वहीँ न्यायालय ने इस तर्क को सिरे से नकार दिया है.