देश/विदेश (जनमत) :- कारगिल के पर्वतीय बटालिक इलाके के पास 20 वर्ष पहले 2 मई 1999 को घरकॉन नामक एक छोटे से गांव में रहने वाले गड़रिया ताशी नामग्याल ने ही सबसे पहले सेना को कारगिल में घुसपैठ की सूचना दी थी। उसकी जानकारी पर ही सेना ने एक टीम को इलाके का निरीक्षण करने भेजा था। सेना के जवानों ने जो देखा, वह आश्चर्यजनक था। जानकारी के मुताबिक उसने देखा कि हथियार और गोला-बारूद लिए कुछ लोग तैयार हो रहे थे। बतया जाता है कि ताशी ने छह लोगों को उस वक्त पत्थर तोड़ते हुए और बर्फ को साफ करते हुए देखा। ताशी के लिए यह असामान्य था, क्योंकि उसने देखा कि कोई पैरों के निशान घटनास्थल तक नहीं गए थे।
वहीँ इससे साफ़ था कि वे दूसरी तरफ से आए थे। उनमें से कुछ ने पठानी पोशाक और कुछ ने सेना की वर्दी पहन रखी थी। उनमें से कुछ के पास हथियार भी थे। ताशी की सूचना सेना को नहीं मिलती तो नतीजा बिल्कुल अलग होता। मगर ताशी को अफसोस है कि उसे उचित पुरस्कार नहीं मिला। फिर ताशी की सूचना पर भारतीय सेना तेजी से आगे बढ़ी और संभावित नुकसान को कम से कम किया। वहीँ कारगिल में भारत ने विजय पताका लहराई लेकिन इस सबके बीच उस अहम् व्यक्ति को भुला दिया गया जिसने कारगिल के परिणामो को बदलकर रख दिया था. हालाँकि वो आज इस बात से ज़रूर मायूस है कि उन्हें जो इनाम मिलना चाहिए थे जिसके वो हकदार थे वो उन्हें आज तक नहीं मिल पाया है, जिससे वो मायूस होने के साथ निराश भी है.