देशं /विदेश (जनमत ) :- गुजरात में 2002 दंगो में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली SIT जांच रिपोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में SIT की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए कहा कि SIT ने एक
सभी तथ्यों की सही पड़ताल करने के बाद अपनी रिपोर्ट दी थी। जांच के दौरान कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिससे यह संदेह होता कि राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा की साज़िश उच्च स्तर पर रची गई। गुलबर्गा सोसाइटी हत्याकांड में मारे गए तत्कलीन कांग्रेस विधायक एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी ने SIT द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अन्य 64 लोगो को क्लीन चिट देने वाली रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
ज़किया जाफरी किसी और के इशारे पर काम कर रही थी: SC
सुप्रीम कोर्ट ने ज़किया जाफरी की याचिका खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति बनाए रखने के लिए जनता से कई बार अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात प्रशासन ने पुलिस की कमी के बावजूद दंगों को शांत करने की पूरी कोशिश किया था। केंद्रीय सुरक्षा बलों और आर्मी को बिना समय गवाये सही समय पर बुलाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि 2006 में ज़किया जाफरी की शिकायत के बाद निहित स्वार्थों के चलते इस मामले को 16 साल तक बनाये रखा, जो भी लोग कानूनी प्रक्रिया के गलत इस्तेमाल में शामिल हैं, उनके खिलाफ कानून के मुताबिक कार्रवाई करने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ऐसा लगता है याचिकाकर्ता ज़किया जाफरी किसी और के इशारे पर काम कर रही थी। उनकी याचिका में कई बातें ऐसी लिखी है जो झूठी पाई गई। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि 514 पेज की याचिका के नाम पर ज़किया जाफरी परोक्ष रूप से विचाराधीन मामलों में अदालत द्वारा दिये गए फैसलों पर भी सवाल उठाया है।
SIT की रिपोर्ट को बिना किसी फेरबदल के स्वीकार किया जाना चहिये:SC
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट, श्रीकुमार और हरे पंड्या ने निजी स्वार्थी के लिए झूठे आरोप लगाए। इन लोगो ने दावा किया कि मुख्यमंत्री मोदी के साथ बड़े अधिकारियों की मीटिंग में दंगों की साज़िश रची गई और वह इस मीटिंग में मौजूद थे लेकिन हकीकत यह है कि वह उस मीटिंग में मौजूद भी नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT के सदस्य अनुभवी थे और उनके पास वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलकर जटिल अपराधों की जांच करने की क्षमता थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज़ायका जाफरी के तर्क से SIT के सदस्यों की सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को कम आंकने की कोशिश की गई। उन्होंने ऐसा क्यों किया यह तो बस उन्हें ही पता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज़किया जाफरी के तर्क लचर और SIT की जांच को कमज़ोर करने का प्रयास था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SIT ने जांच में जुटे गई सभी सामग्रियों पर विचार करने के बाद अपनी रिपोर्ट बनाई थी इसलिए SIT की अंतिम रिपोर्ट को बिना किसी फेरबदल के स्वीकार किया जाना चहिये।
याचिका कड़ाही को खौलाते रहने की कोशिश है: SC
सुप्रीम कोर्ट ने ज़किया जाफरी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह याचिका ‘कड़ाही को खौलाते रहने की कोशिश’ है, और जा़हिर हैं, इसके पीछे का इरादा गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट, श्रीकुमार और हरे पंड्या ने निजी स्वार्थी के लिए झूठे आरोप लगाए।
इन लोगो ने दावा किया कि मुख्यमंत्री मोदी के साथ बड़े अधिकारियों की मीटिंग में दंगों की साज़िश रची गई और वह इस मीटिंग में मौजूद थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा SIT ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में पाया कि बैठक में मौजूद रहने के उनके दावे झूठे हैं। ऐसे झूठे दावों पर ही उच्चतम स्तर पर बड़ी साजिश का ढांचा खड़ा किया गया था लेकिन ये ढांचा ताश के पत्तों की तरह ढह गया।
गौरतलब है कि जाकिया जाफरी ने एसआईटी की रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दिए जाने के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। गुजरात हाईकोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने करीब सात महीने पहले दाखिल याचिका पर मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। गौरतलब है कि पूरा मामला अहमदाबाद की गुलबर्गा सोसायटी में साल 2002 के 28 फरवरी में हुए दंगों से जुड़े हैं. यहां अपार्टमेंट में हुई आगजनी में कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी सहित 68 लोगों की मौत हो गई थी।
एसआईटी ने दंगों की जांच की, जांच के बाद तब के गुजरात मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी। अहमदाबाद सहित गुजरात के कई शहरों कस्बों में दंगे भड़के थे क्योंकि दो दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगाई गई जिससे 59 लोग जिंदा जल गए थे, यह लोग अयोध्या से कारसेवा कर लौट रहे थे। दंगों के दस साल बाद 2012 में एसआईटी ने जांच रिपोर्ट दाखिल की थीरिपोर्ट में नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को क्लीन चिट दी गई थी। याचिका में इसी रिपोर्ट को चुनौती दी गई है और दंगों में बड़ी साजिश की जांच की मांग की थी।
Posted By – Vishal Mishra