Friday, November 22, 2024

देश के पांच ऐसे राष्ट्रपति जिनका सरकार से रहा टकराव :-

UP Special News

नई दिल्ली(जनमत ) :- राष्ट्रपति के चयन में भले ही राजनीतिक दल अपने हितों के हिसाब से जोर आजमाइश करते हैं, लेकिन इस गरिमामयी पद पर पहुंचा व्यक्ति दलगत राजनीति से परे होता है। इस कारण से कई बार सरकार और राष्ट्रपति के बीच टकराव की स्थिति भी बन जाती है। आइए जानते हैं उन राष्ट्रपतियों के बारें में जिनके कार्यकाल में सरकार के साथ विभिन्न मुद्दों पर टकराव की स्थिति निर्मित हुई।

हिंदू कोड बिल पर असहमति :-

डा राजेंद्र प्रसाद (1952-62)

देश के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद का हिंदू कोड बिल पर सरकार से पहला मतभेद हुआ था। आपत्तियां जताते हुए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पत्र भी लिखा था। राष्ट्रपति की शक्तियों को लेकर भी दोनों में कुछ मतभेद रहे। मुंबई में सरदार पटेल की अंत्येष्टि में व्यक्तिगत रूप से राजेंद्र बाबू के शिरकत करने का नेहरू ने विरोध किया था। ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के बाद धार्मिक समारोह में राष्ट्रपति की उपस्थिति का भी नेहरू ने विरोध किया था। नेहरू का कहना था कि पंथनिरपेक्ष देश के मुखिया को सार्वजनिक तौर पर धार्मिक कार्यो से दूरी रखनी चाहिए। इस पर राजेंद्र बाबू ने कहा था कि ‘सोमनाथ आक्रांता के सामने राष्ट्रीय विरोध’ का प्रतीक है |

भारत में राष्ट्रपति चुनाव का बिगुल बज चुका है। राष्ट्रपति का चुनाव आम जनता के वोटों से तय नहीं होता संविधान में इसका अलग से नियम बनाया गया है। संविधान द्वारा राष्ट्रपति को जो शक्तियां प्रदान की गई है वह अत्यंत विस्तृत और व्यापक है।

महंगाई पर उठाई आवाज :-

डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1962-67)

श्रेष्ठ वक्ता और दर्शनशास्त्री डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन और तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के बीच आमतौर पर राजनीति से ज्यादा दर्शन की बातें ही होती थीं। इसके बावजूद वह सरकार की आलोचना से नहीं कतराते थे। 1966 में बढ़ती महंगाई पर उन्होंने सरकार की आलोचना की थी। वह राजनीतिक मसलों पर स्वतंत्र राय भी देते थे। कहा जाता है कि नेहरू की चीन नीति फेल होने पर भी डा राधाकृष्णन निराश थे। राष्ट्रपति भवन के पूर्व सुरक्षा अधिकारी मेजर सीएल दत्ता के अनुसार, उस दौरान डा राधाकृष्णन और कांग्रेस अध्यक्ष कामराज ने नेहरू को रिटायर करने के फामरूले पर भी काम किया था।

रबर स्टांप बनकर नहीं रहे :-

वीवी गिरि (1969-74)

राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ही वीवी गिरि ने कहा था कि यदि वह चुने गए तो रबर स्टांप साबित नहीं होंगे। कांग्रेस पार्टी में विघटन और उथल-पुथल के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति से लोकसभा भंग कर तुरंत चुनाव कराने की सलाह दी थी। इस पर राष्ट्रपति गिरि ने कहा कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य हैं, अकेले प्रधानमंत्री की नहीं। इसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कैबनेट की बैठक बुलानी पड़ी थी।

वापस कर दिया था पोस्टल बिल :-

ज्ञानी जैल सिंह (1982-87)

भारत के सातवें राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के सरकार से मतभेद सामने आए थे। उन्होंने दोनों सदनों से पारित होने के बावजूद पोस्टल बिल पर सहमति नहीं दी थी। उन्होंने विधेयक को विचारार्थ सरकार के पास वापस भेज दिया था। दोबारा राष्ट्रपति ने इस पर कभी निर्णय नहीं दिया। 1986-87 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से उनके कई मसले पर मतभेद रहे थे।

छवि को लगा धक्का :-

फखरुद्दीन अली अहमद (1974-77)

राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने अनुच्छेद 352 (1) के तहत आपातकाल की घोषणा की थी। उनके इस निर्णय की बहुत आलोचना होती है, क्योंकि उन्होंने केवल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह बिना कुछ विचार किए निर्णय ले लिया था। उन्होंने यह जानने का प्रयास भी नहीं कि मंत्रिपरिषद में इस विचार हुआ है या नहीं। बाद में गृह मंत्री ने स्वीकारा भी था कि आपातकाल का एलान 25 जून, 1975 को हो गई थी, जबकि कैबिनेट ने इस पर 26 जून को मुहर लगाई। इस प्रकरण ने राष्ट्रपति पद की साख धूमिल की थी।

Posted By – Vishal Mishra