डीसीएम पर फर्जी आरोपों के “जाल” में खुद फंसी “चालबाज महिला”...

डीसीएम पर फर्जी आरोपों के “जाल” में खुद फंसी “चालबाज महिला”…

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लखनऊ(जनमत). जहां एक ओर महिलाओं के उत्पीडन पर देशभर में बहस छिड़ी हुई है वहीँ प्राय कई ऐसे मामले भी देखने को मिलते हैं जिसमे पुरुषों को फंसाया जाता है और उत्पीडन के नाम पर वरिष्ठ अधिकारीयों का शोषण किया जा रहा है| ताज़े मामले में पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ मंडल के मंडल वाणिज्य प्रबंधक देवानंद यादव  के खिलाफ़ वाणिज्य विभाग की महिला चीफ ओएस शिवानी कुकरेती को फर्जी आरोप लगाना महंगा पड़ा है| वही कार्यालयीन शिष्टाचार और नियम के खिलाफ़  महिला रेलकर्मी के पक्ष में कई महिला सगठन ने यूपी प्रेस क्लब में प्रेसवार्ता की और महिला कर्मचारी शिवानी कुकरेती के खिलाफ दाखिल आरोप पत्र को वापस लेने और ट्रांसफर निरस्त करने की मांग की  बावजूद मीडिया  ने कुकरेती का साथ नहीं दिया, बल्कि उनकी पोल खुलने के बाद मीडिया ने उनकी खाल उतारकर रख दी|

ईमानदार डीसीएम पर लगे झूठे आरोपों का हुआ “खुलासा”

इसके अलावा डीआरएम विजयलक्ष्मी कौशिक ने भी प्रेस कांफ्रेंस करके रेलवे की छवि खराब के लिए शिवानी कुकरेती को दोषी मानते हुए उनका साथ देने प्रेस कांफ्रेंस में पहुंची महिला संगठनों की प्रतिनिधियों को यह कहते हुए आड़े हाथों लिया कि ऐसा कोई कदम उठाने अथवा प्रेस कांफ्रेंस करने से पहले महिला संगठनों की पदाधिकारियों को उनसे मिलकर मामले की हकीकत जानना चाहिए था| वही मिली जानकारी के अनुसार महिला चीफ ओएस शिवानी कुकरेती और लखनऊ मंडल के मंडल वाणिज्य प्रबंधक (डीसीएम) के बीच विवाद की शुरुआत उस समय की है जब लखनऊ जं. पर कार्यरत मुख्य कोचिंग अधीक्षक ए. के. बाल्मीकि के अवकाशप्रप्ति की फाइल लेकर शिवानी कुकरेती देवानंद के ऑफिस में पहुंची थी| वही जानकारी के अनुसार किसी व्यक्तिगत खुन्नस के चलते शिवानी कुकरेती चाहती थी कि डीसीएम उक्त फाइल पर उनके मुताबिक रिमार्क करके दस्तख़त कर दें, जिससे बाल्मीकि को चार्जशीट दे दी जाए और उनका अंतिम अदायगी रोक दिया जाए|

पर डीसीएम देवानंद यादव  ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया और साथ ही यह भी पूछा कि जब यह फाइल उनके अधिकार क्षेत्र की नहीं है, तो वह उसे लेकर कैसे आई, जबकि उक्त फाइल की डीलर कार्यालय में मौजूद है? बस, इसी के बाद विवाद की शुरुआत हुई और कुकरेती ने आरोप लगाया कि डीसीएम ने उनके साथ बदसलूकी की और अपशब्दों का प्रयोग किया  बताते हैं कि इस मामले से संबंधित डीलर शंकरी दासगुप्ता ने विलंब से फाइल प्रस्तुत की थी और एनओसी के लिए पत्र लिखा था. संपूर्ण डीसीआरजी रोकने हेतु डीसीएम पर दबाव बनना, डीसीएम द्वारा नोटिंग पर दिए गए लिखित आदेश का उल्लंघन करना, सीनियर डीसीएम के पास फाइल प्रस्तुत नहीं करना, एसीएम-2 की टाइप की हुई नोटिंग में अपने हाथों से कूट-रचना (करेक्शन) करते हुए संपूर्ण डीसीआरजी रोकने हेतु लिखना और डीसीएम पर अनावश्यक दबाव बनना इत्यादि से जाहिर है कि चीफ ओएस शिवानी कुकरेती ने अपनी गलत मंशा की पूर्ति हेतु डीसीएम दवानंद यादव को माध्यम बनाने की कोशिश की थी|

बताते हैं कि इससे पहले भी वह दो बार अपने त्रिया-चरित्र का यह हथियार चलाकर दो अधिकारियों की इज्जत उतार चुकी हैं और उन्हें ट्रांसफर कराने में सफल भी रही हैं| शिवानी कुकरेती के उपरोक्त तमाम त्रिया-चरित्र और हंगामे के गवाह न सिर्फ कार्यालय के सभी कर्मचारी हैं, बल्कि इसकी पुष्टि के लिए सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग भी मौजूद है. खासतौर पर महिला वाणिज्य लिपिक उपासना सिंह इस पूरे ‘त्रियाचरित्रम’ की प्रत्यक्ष गवाह हैं, जो कि उस समय डीसीएम देवानंद यादव के ऑफिस में पहले से ही मौजूद थीं यही नहीं, कार्यालय में जोर-शोर से हुए इस हंगामे को सुनकर डीआरएम ने भी तत्काल शिवानी कुकरेती के खिलाफ मेजर पेनाल्टी चार्जशीट जारी करने का आदेश दिया था|

प्राप्त जानकारी के अनुसार इससे पहले भी कुकरेती द्वारा नियम विरुद्ध कार्य कराने और गलत हस्ताक्षर लेने के कई प्रयास किए गए थे, जिस पर बार-बार डीसीएम ने उन्हें मौखिक चेतावनी देकर भविष्य में ऐसा नहीं करने को कहा था. तथापि उनकी कार्य-प्रणाली और व्यवहार में किसी प्रकार का कोई सुधार नहीं हुआ| ऐसे कुछ सोद्देश्य अनैतिक घटनाक्रमों के चलते मंडल/जोनल मुख्यालयों का वातावरण अत्यंत दूषित हो चुका है. ऐसे माहौल में कार्यालयीन कर्मचारियों, और खासकर महिला एवं अनुसूचित वर्ग के रेलकर्मियों से काम करवाना अधिकारियों के लिए अत्यंत मुश्किल हो गया है. कुछ अकर्मण्य कर्मचारी काम न करने और केवल नेतागीरी तथा अनर्गल एवं झूठे आरोप लगाने का दबाव बनाकर हमेशा काम करने से बचने की कोशिश करते हैं| यदि ऐसे में किसी कर्मचारी से जवाब तलब किया जाता है, तो वह या तो और ज्यादा आरोप लगाकर मनगढ़ंत जवाब देता है, अथवा जवाब देने की जरूरत ही नहीं समझता है|

इसके अलावा यह भी देखने में आया है कि ऐसे कामचोर और अकर्मण्य कर्मचारियों को कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का ही संरक्षण प्राप्त होता है, जो उन्हें बचाते हैं और बदले में अपने मातहत कनिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ झूठी साजिशों के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं| सूत्रों का कहना है कि पीसीसीएम को देवानंद यादव से नहीं, बल्कि उनकी ईमानदारी से परेशानी है, क्योंकि उनकी ईमानदारी के चलते पीसीसीएम अपनी घटिया करतूतों को सही ढ़ंग से अंजाम नहीं दे पा रहे हैं. जबकि भीतरघाती सीनियर डीसीएम बहुत पहले से ही उनका बगलबच्चा रहा है, अतः उससे ईमानदारी की कल्पना भी नहीं की जा सकती है| डीआरएम विजयलक्ष्मी कौशिक ने कहा की शिवानी कुकरेती महिला संगठनों की आड़ में रेलवे पर दबाव बना रही है और जानबुझकर रेलवे की छवि धूमिल कर रही है और महिला होने के नाते अघिकरियो पर दुर्व्यवहार व शोषण की शिकायते कर रही है वही डीआरएम विजयलक्ष्मी कौशिक ने उपरोक्त तमाम घटनाक्रम और विवाद पर सीनियर डीपीओ की अध्यक्षता में एक आतंरिक जांच समिति गठित की थी|

समिति ने अपनी जांच में शिवानी कुकरेती को उनके दुर्व्यवहार सहित कार्य-प्रणाली इत्यादि के लिए पूरी तरह दोषी पाया और मेजर पेनाल्टी चार्जशीट सहित उनका मंडल कार्यालय से बाहर ट्रांसफर किए जाने की सिफारिश की थी. डीआरएम श्रीमती कौशिक ने भी समिति की उक्त सिफारिशों को मंजूर करते हुए तदनुसार कार्यवाही करने हेतु फाइल सीनियर डीसीएम को अग्रसारित किया था. परंतु जो खुद उपरोक्त तमाम साजिश में शामिल रहा हो, वह ऐसा कोई काम क्यों करेगा. परिणामस्वरूप डीआरएम के आदेश का उल्लंघन करते हुए सीनियर डीसीएम ने मेजर को माइनर पेनाल्टी में बदल दिया और वाणिज्य विभाग से पीआरओ कार्यालय में ट्रांसफर करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी| वही रेल सेवा आचरण नियमो के खिलाफ यूपी प्रेस क्लब में प्रेसवार्ताकरना इनकी अनुशासनहीनता को सिद्ध करता है ऐसे में उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी| उनके खिलाफ पहले भी अधिकारियों से दुर्व्यवहार की बात कई बार आ चुकी है शिवानी कुकरेती ने इस से पहले भी कई अधिकारियों पर झूठा इल्जाम लगाया है|

 

वही जब रेलवे ने जाच की तो सब इल्जाम झूठा पाया गया|वही सचिव अनिल कुमार द्वारा जारी की गई बैठक की मिनट्स के अनुसार बैठक में 9 प्रस्ताव पारित किए गए, जिनके तहत पूरे घटनाक्रम का विस्तार से उल्लेख किया गया है| इसमें कहा गया है कि यदि इस प्रकार की घटनाओं को रोकने हेतु जल्दी ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो निकट भविष्य में अन्य अधिकारियों को भी इस तरह की अनुचित घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है| अतः भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए कठोर कदम उठाए जाने के संबंध में सभी उपस्थित अधिकारियों ने सहमति व्यक्त की|

अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है की जिन अधिकारीयों पर ऐसे झूठें और बेबुनियाद आरोप लगायें जातें हैं उनका पक्ष भी जानना जरूरी हो जाता है और मात्र दोषारोपण करने से किसी के चरित्र को लेकर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए जब तक की आरोप का कोई मजबूत आधार न हों और ऐसी महिलाओं के खिलाफ भी सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए जो पुरुषों के चरित्र का दोहन कर रही है और महिला शशक्तिकरण  के नाम पर मिली ताकत का गलत प्रयोग करते हुए अपने उच्च अधिकारीयों को एक तरह  से “ब्लैकमेल” करने का काम करती है| ऐसी महिलाओं के गलत आरोप सिद्ध होने पर इनपर सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए|