लखनऊ (जनमत) :- हमारे देश में शादी एक जन्म का नहीं बल्कि सात जन्म का बंधन माना जाता है वहीँ कभी कभी ये बंधन इतना कमजोर हो जाता है कि मामूली वाद विवाद और लड़ाई इन सातो जन्मो के रिश्तो पल भार में ख़त्म करने के लिए काफी है. ऐसे ही कई मामले निस्तारण और सुनवाई के लिए पारिवारिक न्यायालयों में फाइल में बंद धुल खा रहें हैं और कई मामलो में सुलाह-समझौते भी हो जातें हैं इसी कड़ी में पारिवारिक न्यायालय में दर्ज होने वाले तलाक के एक मामले को लेकर वकील भी भौंचक्क रह गए, जब वादी-प्रतिवादी सुलह की अर्जी लेकर अदालत में चले आए। दो पत्नियों और एक पति के बीच का विवाद तलाक के मुकदमे के साथ पारिवारिक न्यायालय लखनऊ तक पहुंचा।
अचानक से वादी-प्रतिवादी पलटे और उन्होंने समझौता पत्र के साथ अदालत में मुकदमा वापस लेने की अर्जी लगा दी। सुलह इस आधार पर हुई कि तीन दिन पति एक पत्नी के साथ और चार दिन दूसरी पत्नी के साथ रहेगा। यदि चाहें तो तीज त्योहार पर मिलते-मिलाते रहेंगे और कोई भविष्य में किसी पर कोई मुकदमा नहीं करेगा।
पारिवारिक न्यायालय में इन दिनों इस समझौता पत्र की चर्चा खूब है। अधिवक्ताओं को कहते सुना जा रहा है कि मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी। हालांकि यहां मामला दो बीबियों का है। शहर के एक पॉश इलाके में रहने वाले युवक की शादी 2009 में माता-पिता की मर्जी की लड़की से हुई, जिससे दो बच्चे भी हैं। 2016 से दोनों अलग हुए, युवक ने प्रेम विवाह रचाया और दोनों ने मिलकर अदालत में पहली पत्नी से तलाक का मुकदमा दायर कर दिया। दूसरी पत्नी से एक संतान है। अधिवक्ता दिव्या मिश्रा का कहना है कि 2018 में ये वाद दाखिल हुआ।