लखनऊ (जनमत):- उत्तर प्रदेश के स्वस्थ्य विभाग अपने भ्रष्टाचार को लेकर समय समय पर चर्चा में बना रहता है इसी कड़ी में सिद्धार्थनगर जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी का घूस लेने का विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमे सीएमओ वी के अग्रवाल अपने चेंबर में अपने अधीनस्थों के साथ रिश्वत का पैसा ना मिलने पर पीड़ित को अपशब्द कहते हुए साफ़ सुन जा सकते हैं। वायरल हो रहे अन्य वीडियो में सीएमओ के अधीनस्थ 1.5 लाख की रकम मिलने की बात कबूल करते हुए सीएमओ द्वारा 5 लाख रुपए मांगने की बात कहते हुए नज़र आ रहें हैं.
आपको बता दे कि वायरल हो रहा विडियो सिद्धार्थनगर जिले के सीएमओ कार्यालय का है जिसमे कथित रूप में जिले के बांसी में अवध हॉस्पिटल के नाम से अस्पताल संचालित है जिसके रजिस्ट्रेशन के सारे मानक पूरे होने के बाद भी सिद्धार्थनगर के सीएमओ बी के अग्रवाल ने अपने अधीनस्थों के माध्यम से पहले 1.5 लाख की डिमांड की और जब 1.5 लाख रुपए दे दिए तो उसके बाद एक महीने का लाइसेंस ही निर्गत किया जो कि नियम विरुद्बाध था और बाद में रजिस्ट्रेशन के रिन्यूअल के नाम पर दोबारा 5 लाख रुपए की मांग करने लगे। पीड़ित के मुताबिक जब पैसा देने से मना कर दिया तो अस्पताल पर आए दिन छापेमारी की कार्रवाई होने लगी वहीँ आरोप है कि सीएमओ ने धमकी दी की जब तक मैं यहां हूं तब तक मैं तुम्हारे अस्पताल का ना तो रिनुअल करूंगा और ना ही इसे चलने दूंगा।
जिसके बाद दिनांक 22 अगस्त को CMO सिद्धार्थनगर के रिश्वत का वीडियो भुक्तभोगी डॉ रणजीत द्वारा सचिव स्वास्थ रंजन कुमार को ऑफिस में व्यक्तिगत रूप में मिल कर दिया गया . जिसपर उनके द्वारा CMO सिद्धार्थनगर के ख़िलाफ़ कार्यवाही का आश्वासन दिया गया । CMO सिद्धार्थनगर को हटाये जाने की पत्रावली प्रमुख सचिव ने 24.08.2023 को उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को भेज दिया जिसको उपमुख्यमंत्री ने 28.08.2023 को उक्त पत्रावली प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को वापिस कर दी और भ्रष्टाचार से जुड़े इतने गंभीर मामले में कार्यवाही किये जाने के उलट फाइल ही दबा दी गयी और अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी है.
दुसरी तरफ सीएमओ सिद्धार्थनगर द्वारा पैसे की मांग का विडियो और ऑडियो वायरल होने और शासन के संज्ञान में होने के बावजूद दो सप्ताह से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी अभी तक सीएमओ सिद्धार्थनगर के खिलाफ कोई कार्यवाही न होने से विभाग के साथ ही स्वास्थ्य मंत्री पर भी सवालियां निशाँन उठ गएँ हैं. साथ ही सिद्धार्थनगर के एक जनप्रतिनिधि के द्वारा दोषियों को बचाने की बात भी सामने आ रही है. वहीँ दोषियों के खिलाफ कार्यवाही न होने से शासन की छवि धूमिल हो रही है और सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का दावा भी हवा होता नज़र आ रहा है, आखिर कौन है जो भ्रष्टाचार के इतने बड़े मामले में फंसे सिद्धार्थनगर के सीएमओ को अभी तक संरक्षण देता आ रहा है.
एक तरफ योगी सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के नित नए दावे करती नज़र आती है तो दूसरी तरफ ऐसे मामले सरकार के दावों की पोल खोलते नज़र आते हैं. आखिर क्या कारण है कि स्वास्थ्य सचिव को पूरे साक्ष्य उपलब्ध कराने के बाद सीएमओ सिद्धार्थनगर को हटाने की पत्रावली दो हफ्ते से विभाग में धूल खा रही है और सीएमओ सिद्धार्थनगर अपनी कुर्सी पर हनक के साथ बैठे हुए हैं जिससे सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही किये जाने की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है.
अब सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि सीएमओ सिद्धार्थनगर के भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मामला साक्ष्यों सहित उजागर होने के बाद आखिर शासन हाथ पर हाथ रखकर क्यों बैठा है और किसके दबाव में इतने समय से भ्रष्टाचार से जुडी फाइल दबाई जा रही है. इससे साफ़ लगता है कि सीएमओ सिद्धार्थनगर का प्रभाव योगी सरकार की भ्रष्टाचार के जीरो टोलेरेंस के नीतियों पर भी भारी है और सरकार इस मामले में पूरी तरह से कमजोर साबित हो रही है.अब देखना दिलचस्प होगा कि सीएमओ सिद्धार्थनगर को बचाने वाले बड़े हैं या योगी सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी दावे! अगर सीएमओ सिद्धार्थनगर के निलंबन की कार्यवाही यथाशीघ्र हो जाए तो सरकार की साख बच जाएगी नहीं तो सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी दावे हवा हवाई ही नज़र आयेंगे.
PUBLISHED BY:- ANKUSH PAL…