शाहजहांपुर (जनमत) :– पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ये वो नाम है जो महज 30 साल की उम्र में देश के लिए कुर्वान हो गए आज बिस्मिल के 124 वें जन्मदिवस पर देश उनको याद कर रहा है 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के खिरनी बाग में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने जन्म लिया पंडित रामप्रसाद बिस्मिल अपने पिता मुरलीधर और माता मूलमती की दूसरी सन्तान थे। … माता-पिता दोनों ही राम के आराधक थे अतः बालक का नाम रामप्रसाद रखा गया। माँ मूलमती तो सदैव यही कहती थीं कि उन्हें राम जैसा पुत्र चाहिये था। घर मे सभी लोग उनको राम कहकर पुकारते थे
बाल्यकाल से ही रामप्रसाद की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। उसका मन खेलने में अधिक किन्तु पढ़ने में कम लगता था। इसके कारण उनके पिताजी तो उसकी खूब पिटायी लगाते परन्तु माँ हमेशा प्यार से यही समझाती कि “बेटा राम! ये बहुत बुरी बात है मत किया करो।” उसके पिता ने पहले हिन्दी का अक्षर-बोध कराया किन्तु उ से उल्लू न तो उन्होंने पढ़ना सीखा और न ही लिखकर दिखाया। उन दिनों हिन्दी की वर्णमाला में उ से उल्लू ही पढ़ाया जाता था।
इस बात का वह विरोध करते थे और बदले में पिता की मार भी खाते थे। हिंदी से ज्यादा पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को उर्दू से लगाव था भारत के महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की आज (11 जून 2021) जयंती मनाई जा रही है. उनका जन्म 1897 में ब्रिटिश भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रांत (उत्तर प्रदेश) के शाहजहांपुर में हुआ था. राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने पिता से हिंदी सीखी और उर्दू सीखने के लिए उनको एक मौलवी के पास भेजा गया था. बिस्मिल न सिर्फ एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वो एक बेहतरीन कवि और अच्छे लेखक भी थे. उन्हें साल 1918 के मैनपुरी षडयंत्र और 1925 के काकोरी कांड में हिस्सा लेने के लिए जाना जाता है बिस्मिल को जिस वक्त फांसी दी गई थी, उस समय उनकी उम्र महज 30 साल थी. बिस्मिल ने फांसी का फंदा अपने गले में डालने से पहले भी ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ कविता पढ़ी थी.
उनके बलिदान ने पूरे हिंदुस्तान को हिलाकर रख दिया था. अपनी मातृभूमि के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले राम प्रसाद बिस्मिल की कुर्बानी और उनके जज्बे को आज भी लोग सलाम करते हैं आइये जानते है पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की क्या थी दिनचर्या पंडित राम प्रसाद बिस्मिल सुबह उठकर पूजा पाठ करके नास्ता करने के बाद एवरिच इंटर कालेज में पढ़ने जाते थे इसी कालेज में अमर शहीद अशफ़ाक़ उल्ला खां भी पड़ते थे इन दोनों की दोस्ती हिन्दू मुश्लिम एकता की मिशाल थी ज्यादातर दोनो एक साथ समय बिताते थे यही नही एक ही थाली में खाना भी खा लेते थे बिस्मिल के घर से कुछ दूरी पर खन्नौत नदी है जहां पर दोनों क्रांतिकारी नहाते थे शाम को दोनों दोस्त आर्य समाज मंदिर में समय बिताते थे कहते है पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला खां की दोस्ती इसी एवरिच इंटर कालेज से हुई थी दोनो दोस्तो को 19 दिसम्बर 1927 को दोनों दोस्तो को अलग अलग जेल में फांसी दी गयी.
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है जब पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती पर अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की प्रतिमा को कैमरे में कैद किया तो काकोरी कांड के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला खां को सलाखों के पीछे कैद पाया यही नही करीब 5 दशको से इन दोनों महानायको की प्रतिमाएं सलाखों के पीछे कैद नजर आ रही है आश्चर्यजनक बात यह है कुछ चंद लोग ही इन प्रतिमाओ पर माल्यापर्ण कर पाते है प्रशासनिक अधिकारी और नेता गण तो कभी इन प्रतिमाओ पर माल्यापर्ण नही करते एवरिच इंटर कालेज गेट पर लगी प्रतिमाओ की बजह से गेट भी हमेशा बन्द रहता है और इस गेट पर कई दशकों से ताला नजर आ रहा है.
सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है अंग्रेजो के बनाये गए इस कॉलेज में ये प्रतिमाये किसने बनवाई इस बात का प्रमाण कही भी नही मिल रहा है जब युवजन सभा के अजय पांडेय उर्फ अंशू से इन प्रतिमाओ के इतिहास के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने सिर्फ इतना ही बताया कि ये प्रतिमाये आजादी के बाद किसी छात्र नेता ने बनवाई थी लेकिन उन्होंने ने भी यह नही बता पाया आखिर ये प्रतिमाये बनी कब सवाल यह है कि आखिर आजाद देश मे भी इन अमर शहीदों की प्रतिमाओ की उपेक्षा क्यों इस उपेक्षा का जिम्मेदार कौन होगा, ये ज़रूर एक बड़ा सवाल है.
PUBLISHED BY:- ANKUSH PAL… REPORT- RAJEEV SHUKLA, SHAHJAHANPUR.