लखनऊ (जनमत):- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन के बाद विवाह करने वाले जोड़े द्वारा संरक्षण देने की मांग में दाखिल याचिका खारिज करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने दिया है। इस दौरान कहा है कि सिर्फ विवाह करने के लिए किया गया धर्म परिवर्तन मान्य नहीं है, क्योंकि ऐसा धर्म परिवर्तन किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है। प्रियांशी उर्फ सबरीन और उसके पति ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि उन्होंने स्वेच्छा से विवाह किया है, मगर लड़की के पिता इससे खुश नहीं हैं। कोर्ट ने 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के नूरजहां बेगम केस की नजीर देते हुए कहा कि, इसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से किया गया धर्म परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है।
दंपती ने कोर्ट से अपने वैवाहिक जीवन में किसी के द्वारा हस्तक्षेप न करने और पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश देने की मांग की थी।कोर्ट ने कहा कि इस मामले को देखने से स्पष्ट है कि लड़की जन्म से मुस्लिम है और उसने 29 जून 2020 को धर्म परिवर्तन कर हिंदू धर्म स्वीकार किया और 31 जुलाई को उन्होंने हिंदू रीति से शादी कर ली। इससे स्पष्ट है कि धर्म परिवर्तन सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से किया गया है।
नूर जहां बेगम केस की दी नजीर नूरजहां बेगम केस में कई याचिकाओं में एक ही प्रश्न था कि क्या सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन मान्य है, जबकि धर्म बदलने वाले को स्वीकार किए गए धर्म के बारे में न तो जानकारी थी और न ही उसमें आस्था और विश्वास । सभी याचिकाओं में एक ही मुद्दा था कि लड़कियों ने मुस्लिम लड़के के कहने पर इस्लाम स्वीकार किया था, जबकि उनको न आस्था और विश्वास था और न ही इस धर्म के बारे में कोई जानकारी थी।
Posted By:- Ankush Pal,
Correspondent,Janmat News.