लखनऊ (जनमत):- उत्तर प्रदेश में 2022 के चुनाव होने में भले ही अभी वक्त जरूर है लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी रण को फ़तेह करने की तैयारियां शुरू दी है। अनुशासित पार्टी बहुजन समाज पार्टी को छोड़ दिया जाये तो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता योगी सरकार को घेरने की पुरजोर कोशिश में लगे है। दोनों ही पार्टियां सरकार को घेरने के लिए कोई भी मौका हाथ से निकलने नहीं देती। योगी सरकार में कानपुर वाले बदमाश विकास दूबे के कथित इन्कॉउंटर के बाद तो उत्तर प्रदेश में एक लहर सी उठी है। अपनी मंशा और वायदे के मुताबिक योगी सरकार में बदमाशों का चुन – चुन कर सफाया किया जा रहा है। बदमाशों के सफाये में ख़ास बात यह है कि ” न कोई सुनवाई न कोई तारीख, फैसला ऑन द स्पॉट ” कोर्ट में कोई सुनवाई नहीं होगी बल्कि योगी सरकार में फैसला ऑन द स्पॉट होगा।
अपराधियों के इस तरह के सफाये में योगी सरकार पर लोगों ने सवाल भी उठाये लेकिन राज्य से लेकर केंद्र तक भाजपा की सरकार और सभी महत्वपूर्ण विभागों में भी कथित रूप से भाजपा समर्थित लोग ही काबिज है। यही वजह है कि ऐसे तमाम सवालों का भाजपा सरकार में कोई औचित्य नहीं। हालांकि उत्तर प्रदेश वाली भाजपा की सरकार कानपुर वाले विकास दूबे के मामले के बाद जिन बदमाशों पर कार्रवाई की गई उनमे अधिकतर सर्वण जाति के अपराधी थे। इसे भाजपा का दुर्भाग्य कहें या फिर किसी की सोची समझी साज़िश इस पर फिलहाल सभी चुप्पी साधे है लेकिन विपक्षी पार्टियों ने योगी सरकार की इस कार्रवाई को अपने राजनीतिक लाभ के लिए बड़ा हथियार बना लिया है। कांग्रेस हो या फिर समाजवादी पार्टी दोनों ही पार्टियां कथित रूप से ब्राह्मणों पर हुए अत्याचार को मुद्दा बनाकर इसे भुनाने की कोशिश में लगी हुई है। इन दोनों पार्टियों में अपनी पहचान के मुताबिक समाजवादी पार्टी कांग्रेस से बहुत आगे है। योगी सरकार की घेराबंदी के लिए कभी विधानभवन के बाहर आलू रक्खर प्रदर्शन तो कही दूसरे मुद्दे पर लोकभवन के बाहर सरकार के खिलाफ धरना – प्रदर्शन।
इस बार तो समाजवादी पार्टी की छात्र सभा ईकाई ने लखनऊ की कमिश्नरेट पुलिस को चुनौती दे डाली है। चुनौती भी इसलिए कि सीसीटीवी कैमरे से लैस अति सुरक्षित लोकभवन के ठीक पीछे दारुल सफा में दीवारों पर योगी सरकार के खिलाफ जो पोस्टर बाजी हुई है उसने पुलिस की गश्ती व्यावस्था की पोल खोल दी है। बता दे कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की वही दारुल सफा है जहा माननीयों का ही आवास है। ऐसे में दारुल सफा की दीवारों पर सरकार के खिलाफ लगे पोस्टर कौतुहल का विषय बना हुआ है। माना जा रहा है कि पुलिस को ठेंगा दिखाते हुए रात में दीवारों पर पोस्टर लगाए गए है। पोस्टर में ब्राह्मणों पर कथित रूप से हो रहे अत्याचार को चित्रांकित किया गया है। पोस्टर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फरसे के साथ दिख रहे है साथ ही ब्राह्मणों का एक समूह उनके सामने है। मतलब साफ़ है कि सीएम योगी फरसे से ब्राह्मणों का सफाया करने में लगे है।
पोस्टर में मुख्यमंत्री के पीछे उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और अन्य भाजपा नेता को दिखाया गया है। साथ ही पोस्टर में डॉक्टर और कोरोना मरीज को इंगित कर कथित रूप से धन उगाही की जा रही है। पोस्टर में यह भी दर्शाया गया है कि भाजपा भगाओं – बेटी बचाओं। न ब्राह्मणों पर अत्याचार, न भ्रस्टाचार और न ही गुंडाराज अबकी बार अखिलेश सरकार। मुख्यमंत्री की विवादित फोटो के साथ भगवान परशुराम और पूर्व मंत्री अखिलेश यादव को भगवान का अवतार दिखाया गया। पोस्टर के नीचे विकास यादव का नाम भी पड़ा है। साथ ही विकास यादव का पद लिखा है कि वह समाजवादी पार्टी की छात्र सभा ईकाई के प्रदेश सचिव है। सुबह लोगों ने जब यह विवादित पोस्टर देखा तो लोगों में कानाफूसी शुरू हो गई। हालांकि यह साफ नहीं हो सका है कि दारुलसफा से कुछ दूरी पर कोतवाली हजरतगंज और पुलिस चौकी तो दारुलसफा में ही है ऐसे में कौन है जिसने पुलिस की कान के नीचे सीएम योगी के नाम सम्बोधित विवादित यहाँ पर आसानी से लगा दिए और कानों कान किसी को इसकी भनक भी नहीं लगी। फ़िलहाल पुलिस के पास अभी लाठी पीटने के अलावा कुछ भी नहीं है।
Posted By:- Amitabh Chaubey