वाराणसी (जनमत):- शारदीय नवरात्र की षष्ठी तिथि पर माँ कात्यायनी के दर्शन- पूजन की मान्यता है। कथा है कि कत नामक एक प्रसिपस्या पर उनकी इच्छानुसार भगवती उनकी पुत्री के रूप में प्राकट्य हुई। अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्मी भगवती ने शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तक ऋषि कात्यायन की पूजा ग्रहण की और दशमी के दिन महिषासुर का वध किया था।
इनका स्वरूप अत्यन्त भव्य एवं दिव्य है। भगवती चार भुजाओं वाली हैं। एक हाथ वर मुद्रा दूसरा अभय मुद्रा में है। तीसरे हाथ में कमल पुष्प और चौथे हाथ में खड्ग सुशोभित है। मां सिंहारूढ़ा हैं। जो साधक मन, वचन एवं कर्म से मां की उपासना करते हैं उन्हें वे धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के फल प्रदान करती हैं और शत्रु का विनाश कर भय से मुक्ति दिलाती हैं कात्यायनी देवी |
नवरात्र के छठवें दिन देवी कात्यायनी का दर्शन-पूजन होता है। जिन कन्याओं के विवाह समय से नहीं हो रहे हैं या विवाह में अनेक अड़चनें आ रही हैं उन्हें देवी के इसी स्वरूप का दर्शन करना चाहिए। इनका मंदिर चौक स्थित संकठा मंदिर के पीछे है।
Reported By :- Umesh Singh