रेलवे के निजीकरण के विरोध में मजदूर यूनियन ने निकाला विरोध मार्च

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वाराणसी (जनमत):- सरकार द्वारा रेलवे के निजीकरण किये जाने के विरोध में  रेल कर्मचारियों की नाराज़गी अब धरना – प्रदर्शन का रूप लेने लगी है। सरकार की तानशाही के कारण पूरे देश के रेल कर्मचारी बेहद नाराज़ है। पूरे देश में रेलवे के निजी कारण  के सामने आने के बाद  विभिन्न मजदूर यूनियन संगठनों ने इसका कड़ा विरोध दर्ज कराया इसके तहत आज वाराणसी के  उत्तर रेलवे मजदूर यूनियन के बैनर तले  रेल कर्मचारियों  ने  कैंट रेलवे स्टेशन के समक्ष शक्ति प्रदर्शन के माध्यम से  विरोध प्रदर्शन  दर्ज कराया  मजदूर यूनियन के  पदाधिकारियों कार्यकर्ताओं ने वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन प्लेटफार्म नंबर एक से होते हुए कैंट रेलवे स्टेशन सर्कुलेटिंग एरिया में जमकर नारेबाजी के साथ रेलवे कर्मचारी विंध्यवासिनी यादव एवं चंद्रशेखर यादव के नेतृत्व में निजी करण को लेकर के जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया|

प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार जबरन रेलवे को बेचने की कोशिश कर रही है। कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि सरकार रेलवे का निजीकरण का विचार त्याग दे अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे। आप को बता दे कि रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों और रेलवे क्षेत्र के विषेशज्ञों का कहना है कि देश में जो कुछ चलाया जा रहा है, वह ठीक नहीं है। वही बहुत सारे विशेषज्ञों का कहना है कि रेलवे का निजीकरण कभी भी कामयाब नहीं हुआ है।उनका कहना है कि इंग्लैंड के साथ ही साथ दुनिया भर में अब तक जिन-जिन देशों ने अपने देश के रेलवे का  निजीकरण किया, उन सभी  देशों को अंतत में उनका पुनर्राष्ट्रीयकरण करना पड़ा। विश्व के जिन-जिन देशों ने अपने देश के रेलवे का निजीकरण किया, उन्हें बाद में उसका राष्ट्रीयकरण करने के लिए बेबस होना पड़ा है।

वही ब्रिटेन ने  भी  कुछ वर्ष पहले अपनी रेलवे का निजीकरण किया था, वही अब वहां भी एक-एक कर के  रेल लाइनों का राष्ट्रीयकरण किया जा रहा है। मिली जानकारी के अनुसार ब्रिटेन की उस समय की सरकार ने अपनी ही पार्टी के उद्योगपति सांसदों को  रेलवे को तोड़कर और कंपनियों में उसके तुकड़े करके सौंपी थी। इन सांसदों  ने रेलवे से सिर्फ लाभ ही कमाया, उनके रखरखाव पर कोई भी ध्यान नहीं दिया। जिस का नतीजा यह हुआ कि रेल दुर्घटनाएं बढ़ती गईं, जिससे वहां की जनता में सरकार के विरुद्ध क्रोध भर गया और रेलवे के पुनर्राष्ट्रीयकरण की मांग जोर पकड़ने लगी।

इसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार को रेल का  राष्ट्रीयकरण करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उल्लेखनीय  है कि आस्ट्रेलियाई जनता द्वारा बड़े पैमाने पर चलाए  गए आंदोलन ‘हमारा ट्रैक वापस लो’ के बाद वहां की सरकार ने रेलवे को दुबारा से  अपने हाथों में लेना पड़ा। अर्जेंटीना में निजीकरण को ले कर रेल दुर्घटनाओं में भारी वृद्धि हुई जिस के बाद वह की सरकार ने साल 2015 में रेलवे का फिर से राष्ट्रीयकरण कर दुबार अपने हाथो में लेना पड़ा। इसी तरह न्यूजीलैंड ने भी साल 1980 में रेलवे का निजीकरण किया था, साल 2008 में भारी घाटे के  बाद रेलवे का पुनर्राष्ट्रीयकरण करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

ये सब  अब भारत में भी लागू किया जा रहा है। मौजूदा समय में केंद्र सरकार अपने कुछ खास  उद्योगपतियों को रेलवे की कीमती संपदा सौंपने की नीति पर चलती नजर आ रही है। ऐसा लग रहा है कि सरकार ने दुनिया के अनुभव से कोई सबक  नहीं लिया है, जिसके परिणाम आने वाले भविष्य में बहुत खतरनाक हो सकते हैं और देश की 132 करोड़ जनता को इसका बुरा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

Posted By:- Amitabh Chaubey