कुशीनगर (जनमत):- उत्तर प्रदेश के जनपद कुशीनगर में आजादी धीरे- धीरे 75 वर्ष से ज्यादा उम्र की हो गयी लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ” अछूतों” की सामाजिक, आर्थिक स्थिति दयनीय बनी हुई है | आज भी इनके साथ मुल्क राज आनंद के उपन्यास “अनटचेबल” के चरित्र बाखा व राखा जैसा व्यवहार किया जाता है | सनातन धर्म के उदय के साथ ही इस जाति के साथ जुड़ी अवधारणा व राजनीतिक गोलमाल के चलते यह कौम अस्पृश्य बनी हुई है | इनसे शरीर छू जाना भी पाप माना जाता है | वोट संख्या में कम होने के चलते इस “ट्रोडेन क्लास” का स्तर ऊपर उठने का नाम नहीं ले रहा | शिक्षा और विकास की दौर में पीछे रह जाने के चलते इनके बच्चे सुअर चराने, बांस की टोकरी बनाने तथा सड़क व टॉयलेट साफ करने से आगे नहीं बढ़ सके हैं | इनके रहने का घर ऐसा है कि बगैर नाक पर रुमाल रखे आदमी खड़ा ही नहीं हो सकता है….।
आम लोगों में “डोम” के नाम से जानी जाने वाली यह अति दलित जाति भी सनातन धर्म के उद्भव के साथ ही अस्तीत्व में आयीं सबसे पुरानी जातियों में से एक है | परंतु कतिपय अवधारणाओं के चलते इसे अछूत माना जाने लगा | अनटचेबल उपन्यास का चरित्र “बाखा” इसी कौम का से ताल्लुक रखता था |शरीर छू जाने पर बाखा की पीटाई कर दी जाती है | मंदिर सहित किसी अन्य जाति के लोगों का सामान छूने का अधिकार बाखा को नहीं था | कमोबेश इस कौम के लोगों की स्थिति अभी भी वही बनी है | गलती से भी शरीर छू जाने पर इनको डांट खानी पड़ती है | सार्वजनिक दुकानों तक पर भी चाय पीने के लिए इनको अपना कप लेकर जाना पड़ता है |
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इस ट्रोडेन क्लास की दयनीय हालत को देखकर इनके उद्धार के लिए अथक प्रयास किये | अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन भी चलाए | उनकी दिली इच्छा थी कि अछूतों को भी समाज के अन्य लोगों की तरह जीने का हक मिले…. आज राष्ट्रपिता की जयंती थी | जगह- जगह कार्यक्रम आयोजित किए गये | महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने की कसमें खायीं गयी | लेकिन उनकी बेहतरी के लिए कोई ठोस योजना नहीं सामने आयी |तो आईए आपको सीधे अछूत माने जाने वाली एक अति दलित बस्ती में ले चलते हैं | कुशीनगर जनपद के खड्डा तहसील की ग्रामसभा नेबुआरायगंज की अति दलित बस्ती में कदम रखते ही पहली मुलाक़ात अर्धनग्न दो छोटे- छोटे बच्चों से होती है | घर से ही सटे बने सुअर बाड़े में दोनों मासूम सुअर को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे | इन बच्चों पर कैमरे की नजर जमी ही हुई थी कि गंदगी के बीच मैले कुचैले कपड़ों से घिरा एक जगह निगाह में आ जाता है |
पूछने पर इस कुनबे का एक सदस्य इंदर बताता है कि यह औरतों के स्नान करने की जगह है | शौचालय के बारे बतातें हैं कि बनने के साथ ही खंडहर में तब्दील हो गया | इस दलित बस्ती के लोग बताते हैं कि बच्चे स्कूल जाने की बजाय सुअर चराने जाते हैं | कुल मिलाकर सरकार की सारी योजनाएं यहां आने से पहले ही मर गयीं थी…. यहां लोग नर्क की जिंदगी जीने को विवश है | कमोबेश कुशीनगर जनपद के तकरीबन 20 हजार अति दलित इसी तरह की जिंदगी काट रहें हैं | वोट की तादाद बेहद कम होने के कारण जनप्रतिनिधि भी इस जाति के लोगों पर ध्यान नहीं देते हैं…।