लखनऊ (जनमत) :- उत्तर प्रदेश के कालीचरण पी०जी० कालेज, लखनऊ में “भारतीय राष्ट्रीयता के उत्थान में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की भूमिका” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया । उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे डॉ० मुकुल चतुर्वेदी, वाइस चेयरमैन, यू०पी० स्टेट काउन्सिल ऑफ हायर एजूकेशन लखनऊ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जब लोकमान्य तिलक जी ने उद्घोषणा की कि “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे हम लेकर रहेंगे” उसी समय ब्रिटिश साम्राज्य की चूरें हिल गई थी और भारतीयों ने ठान लिया था कि हम स्वतंत्रता लेकर रहेंगे। उन्होंने कहा कि जिन्हें गरम दल कहकर सम्बोधित किया गया था वह भारतीय राष्ट्रवादी लोग थे और भारत का राष्ट्रवाद प्रभु श्री राम से प्रारम्भ होता है।
बाबा भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ से मुख्य वक्ता के रूप में पधारी प्रो० प्रीति चौधरी ने कहा कि तिलक भारत को एक आदर्श गरिमायुक्त राष्ट्र के रूप में निर्मित करना चाहते थे, जो युवाओं के चरित्र निर्माण के बिना सम्भव नहीं था और उधार शिक्षा से चरित्र का निर्माण नहीं किया जा सकता। शिक्षा में सुधार बिना स्वतंत्रता के सम्भव नहीं था, इसलिए पहले हमें स्वतंत्रता प्राप्त करनी होगी उसके बाद हम अपने देश का सर्वांगीण विकास स्वयं कर लेंगे।.
विशिष्ट वक्ता के रूप में शिरकत कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो० उमा शंकर सिंह ने भारतीय राष्ट्रीयता के उत्थान में तिलक की भूमिका पर प्रकाश डालते हुये कहा कि तिलक की विरासत का पूर्ण अवतरण क्रान्तिकारियों में दिखाई देता है, जब देश 1947 में आजाद हुआ तो उसके मूल में कहीं न कहीं तिलक ही विद्यमान थे। डॉ० बीना राय प्राचार्या अवध गर्ल्स डिग्री कालेज, लखनऊ ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रीयता की भावना का जागरण राष्ट्रभाषा और जनजागरण के बिना सम्भव नहीं था इसलिए तिलक जी ने देवनागरी लिपि को अपनाने तथा हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने का प्रबल समर्थन किया और जनजागरण के लिए गणेशोत्सव का प्रारम्भ किया।
महाविद्यालय के प्रबंधक इं. वी.के. मिश्र जी ने भारत के 12 राज्यों से पधारे हुए विद्वानों का स्वागत करते हुए उनका आभार व्यक्त किया तथा कार्यक्रम के मुख्य विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जिस आंदोलन की अलख लोकमान्य तिलक ने जगाई थी उसे गांधी जी ने जीवित रखा और स्वदेशी आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि के मूल में कहीं न कहीं तिलक से ही गांधी जी प्रेरित हो रहे थे।महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो० चन्द्र मोहन उपाध्याय जी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि देश में राजा राममोहन राय और दयानन्द सरस्वती के रूप में जो दो धाराएं चलीं उन्हीं का मिलन बालगंगाधर तिलक के रूप में हमें देखने को मिलता है। गोपालकृष्ण गोखले के कहने पर गांधी जी भारत भ्रमण पर निकले थे लेकिन उसके पहले यह कार्य लोकमान्य तिलक कर चुके थे वह देश ही नहीं विदेशों के भ्रमण की भी बात करते थे। जिससे अपने राष्ट्र को नई दिशा प्रदान की जा सके।
कार्यक्रम में प्रबंध समिति के वरिष्ठ सदस्य एवं पूर्व प्रतिकुलपति प्रो० एम०पी० सिंह, विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये हुए विद्वानों ने अपने विचार रखे जिससे स्वतंत्रता आंदोलन में तिलक की भूमिका को समझने में सहायता मिली। विभिन्न महाविद्यालयों से पधारे प्राचार्यों ने सहभागिता की तथा संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त किये। अकादमिक सत्र में शोधार्थियों द्वारा अपने शोध पत्रों का वाचन किया गया। जिसमें भारी संख्या में शोधार्थियों ने सहभागिता की। राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय दिवस 12 नवम्बर 2022 को विभिन्न अकादमिक और समापन सत्र का आयोजन किया जायेगा जिसमें अन्य अनेक विद्वानों के सारगर्भित विचारों से शोधार्थी और विद्यार्थी लाभान्वित होंगे।
SPECIAL REPORT- ABHILASH BHATT…