लखनऊ (जनमत):- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते समय व्यक्ति को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करने के लिए तर्कसंगत आदेश जारी करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब ऐसे आदेश जारी किए जाते हैं तो अदालतों को जांच एजेंसी, शिकायतकर्ता और समाज की चिंताओं के बीच संतुलन स्थापित करना चाहिए क्योंकि गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति की जमानत याचिका मंजूर या खारिज होने का सीधा असर व्यक्ति के जीवन एवं स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर पड़ता है।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने ये टिप्पणियां उन दो याचिकाओं पर सुनाए गए फैसले में कीं जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेशों को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने इन दो अलग-अलग मामलों में आरोपितों की अग्रिम जमानत याचिकाएं तो खारिज कर दी थीं, लेकिन नियमित जमानत के लिए ट्रायल कोर्ट में आत्मसमर्पण करने के लिए 90 दिनों के लिए गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान कर दिया था। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के अधिकार को सही ठहराते हुए कहा कि ऐसी विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल अनियंत्रित तरीके से नहीं किया जा सकता।
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