गोरखपुर (जनमत):- गोरखपुर 80 के दशक का दौर गोरखपुर में ऐसा था कि जैसे आज पुलिस की सर्किल होती है, तो उस वक्त माफियाओं ने शहर को दो भागों में बांट दिया था। आधा शहर हरिशंकर तिवारी का इलाका था तो आधा विरेंद्र प्रताप शाही का। खौफ ऐसा था कि दोनों माफियाओं के लोग एक दूसरे के इलाके में नहीं जाते थे। अगर विरेंद्र शाही का आदमी हरिशंकर तिवारी के इलाके में चला जाए तो मारा जाता था और अगर हरिशंकर तिवारी का आदमी विरेंद्र शाही के इलाके में जाए तो मार दिया जाता था।
गैंगवार और हत्याएँ गोरखपुर में आम बात थी। हर दो—चार दिन पर यहाँ गैंगवार होते रहते थे। हालांकि, एक वक्त था जब विरेंद्र शाही हरिशंकर तिवारी के लिए ही बस्ती में काम करते थे। लेकिन, बाद में ठेकेदारी और वर्चस्व को लेकर दोनों में ऐसी ठनी को दोनों एक—दूसरे की जानी दुश्मन हो गए।
हालांकि, इससे आम आदमी का कोई लेना—देना नहीं होता था। लेकिन, यूँ कहा जा सकता है कि यह दोनों माफिया ही अपने आप में यहाँ के लिए सरकार हुआ करते थे।