लखनऊ (जनमत):- एक शातिर बदमाश को लखनऊ पुलिस तिहाड़ जेल से रिमांड पर लेकर आती है और पुलिस सुरक्षा के बीच ही बदमाश एक एसआई को घायल कर उनका सरकारी असलहा लूट लेता है। बाद उसी असलहे से पुलिस टीम पर फायर कर देता है। फायर करने के बाद भी पुलिस टीम बदमाश को आत्मसमपर्ण के लिए कहती है इसके बावजूद वह फिर से पुलिस टीम पर फायर झोंक देता है। जवाबी कार्रवाई में पुलिस टीम भी बदमाश पर फायर करती है जिसमे गोली लगने के बाद बदमाश घायल हो जाता है और बाद में हॉस्पिटल में ईलाज के दौरान उसकी मौत हो जाती है। लखनऊ के थाना विभूतिखण्ड इलाके में 6 जनवरी को जनपद मऊ के पूर्व ब्लॉक प्रमुख हिस्ट्रीशीटर अजीत सिंह हत्याकाण्ड में गिरधारी मुख्य आरोपी और शूटर था। गिरधारी पर आरोप था कि उसने अपने साथियों के साथ मिलकर अजीत सिंह पर ताबड़तोड़ गोली दागकर हत्या की है।
(मृतक गिरधारी लोहार की फ़ोटो)
गिरधारी 29 वर्ष से जरायम की दुनिया में सक्रिय था। वह दोनों हाथों से असलहा चलाने में माहिर था। उसका नाम डॉक्टर इसलिए पड़ा था, क्योंकि उसे ये मालूम था की शरीर के किस हिस्से में गोली मारने से तुरंत मौत हो जाती थी। लखनऊ, वाराणसी, दिल्ली समेत देश के 12 बड़े शहरों की क्राइम डायरी में भले ही उसका असली नाम गिरधारी विश्वकर्मा दर्ज हो। लेकिन अपराध की दुनिया में उसे कई नाम थे। वह गिरधारी लोहार, टग्गर,डॉक्टर, रॉबिनहुड, DM के नाम से भी जाना जाता था। आप कों बता दे शूटर गिरधारी का निशाना अचूक था। वह सुपारी लेकर हत्याकांड को अंजाम देता था। उसकी तलाश वाराणसी पुलिस को भी थी। गिरधारी ने 30 दिसंबर 2019 को वाराणसी के सदर तहसील परिसर में दिनदहाड़े ठेकेदार नीतीश सिंह की हत्या कर दी थी। इसके बाद उसका नाम उत्तर प्रदेश के बड़े अपराधियों में शामिल हो गया। अजीत सिंह की हत्या के एक महीने से अधिक समय तक उत्तर प्रदेश पुलिस उसकी तलाश करती रही।
(मृतक हिस्ट्रीशीटर अजीत सिंह)
लेकिन 11 जनवरी को फिल्मी स्टाइल में दिल्ली पुलिस ने रोहिणी इलाके से उसे गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि इसे सरेंडर माना गया। चर्चा ये भी है कि गिरधारी के ‘बाहुबली आका’ के कहने पर गिरधारी ने खुद को दिल्ली में गिरफ्तार कराया था। शायद उसे यह मालूम हो गया था कि यदि वो उत्तर प्रदेश पुलिस की पकड़ में आया तो उसका एनकाउंटर जरुर हो जाएगा। वाराणसी के चोलापुर थाने के लखनपुर का मूल निवासी गिरधारी विश्वकर्मा वर्ष 2001 से जरायम जगत में एक्टिव था। वर्ष 2001 में गिरधारी के विरुद्ध लूट का पहला मुकदमा दर्ज किया गया था। वर्ष 2000 तक गिरधारी चोलापुर क्षेत्र के एक सफेदपोश का शागिर्द था और छोटे-मोटे झगड़ों में उसका नाम सामने आता गया। वही सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सफेदपोश के संरक्षण में आने से पहले गिरधारी की छोटी सी दुकान भी थी। इसके बाद वह जौनपुर और आजमगढ़ के सफेदपोशों के संपर्क में आया था।
(गिरधारी लोहार का अपराधिक इतिहास)
वर्ष 2005 में जौनपुर के केराकत क्षेत्र में हत्या के बाद गिरधारी दोनों हाथ से ताबड़तोड़ फायरिंग करने वाले शार्प शूटर के तौर पर जरायम जगत में कुख्यात हो गया। वर्ष 2010 में गिरधारी पर 50 हजार का इनाम घोषित हुआ था। इसके बाद 2019 में नितेश की हत्या हुई तो उस पर एक लाख का इनाम घोषित हुआ था। गिरधारी दिमाग से भी बहुत शातिर था। वह पुलिस से बचने के लिए नए नए तरीका ढूँढ निकलता था और जिसकी भी प्रदेश में सरकार होती थी वह उसी पार्टी के नेताओं से दोस्ती गांठ लेता था। 2005 में जौनपुर में चेयरमैन चुनाव की रंजिश में विजय गुप्ता की हत्या करने के बाद उसने तत्कालीन सांसद से दोस्ती बना ली, जो अब तक बराकरार रही। इसके बाद 2007 में बसपा की सरकार बनने के बाद आजमगढ़ से सत्ताधारी विधायक से रिश्ते मजबूत कर लिया। लेकिन 2012 में सरकार बदलते ही उससे दुश्मनी हो गई थी। फिर आजमगढ़ के सपा विधायक से नजदीकी बढ़ा ली।
2017 में सरकार बदली तो गिरधारी ने भी पाला बदल लिया। अब वह चंदौली के सत्ताधारी विधायक की शरण में रहकर जरायम की दुनिया में आतंक बन चुका था। उसने जौनपुर, आजमगढ़, मऊ, वाराणसी, लखनऊ में अब तक जितने भी हत्या किया वह सब राजनीति से जुड़े लोग थे। इसके बाद 2008 में मऊ के घोसी में नंदू सिंह की हत्या, 2011 में आजमगढ़ के जीयनपुर में डमरू सिंह की हत्या, 2010 में मऊ के कोतवाली इलाके में सुनील सिंह की हत्या, 2013 में बीएसपी विधायक सर्वेश सिंह उर्फ सीपू की हत्या, 2019 में वाराणसी में नीतेश सिंह की हत्या और 2020 में लखनऊ में पूर्व ब्लाक प्रमुख अजीत सिंह हत्या कर दी थी। गिरधारी की मौत के बाद अब ऐसे कई राज होगे जिन से पर्दा उठा भेहद ही मुश्किल हो जायेगा|
Posted By:- Amitabh Chaubey