लखनऊ (जनमत):- उत्तर प्रदेश कि राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर स्थित मेयो हॉस्पिटल में डाक्टरों की लापरवाही का शिकार हुए एक और व्यक्ति की मौत हुई है। मृतक का नाम नीरज श्रीवास्तव था और वह पेशे से पत्रकार थे। मृतक मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जनपद बाराबंकी के रहने वाले थे। नीरज को उनके परिजनों ने मेयो हॉस्पिटल में भर्ती कराया था। डॉक्टरों ने निमोनिया बताकर उनको वेंटिलेटर पर रक्खा था।
गुरुवार को नीरज श्रीवास्तव की मौत हुई तब मेयो के डॉक्टरों ने डिस्चार्ज स्लिप पर उनके मरने की वजह को दिल का दौरा अंकित किया था। मीडिया कर्मी की मौत के बाद बदनाम और चर्चित हॉस्पिटल के डाक्टरों ने मृतक के परिजनों को 1 लाख 18 हजार रूपये का बिल थमा दिया। परिजनों द्वारा रूपये न देने की स्थिति में डॉक्टरों ने शव को देने से इंकार कर दिया। काफी हो – हल्ला और हंगामा हुआ इसके बावजूद भी हॉस्पिटल प्रशासन ने 1 लाख रूपये जमा करा लिए तब जाकर नीरज श्रीवास्तव के शव को उनके परिजनों को सौपा गया । इस घटना से एक दिन पहले भी यहाँ पर भर्ती कोविड के मरीज की लापरवाही के चलते मौत हुई थी। काफी शोर – शराबा और हंगामा हुआ। शिकायत भी हुई लेकिन हॉस्पिटल प्रशासन पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
डॉक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है। कोरोना काल में तो देश – दुनिया डॉक्टर रुपी इन्ही भगवान पर निर्भर है। डॉक्टर भी पूरी मेहनत और लगन से कोरोना काल में अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे है। इसके बावजूद डॉक्टरों की एक ऐसी फौज है जिसका मानवता से दूर – दूर तक कोई वास्ता नहीं है। ऐसे डॉक्टरों को सिर्फ रूपये चाहिए या फिर कोई रसूख वाला हो तो उसी के ईलाज में अपनी ईमानदारी दिखाते है। लखनऊ समेत सूबे के कई जनपदों में कई घटनाये सामने आई है जहा पर डाक्टरों की लापरवाही के चलते मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।
लखनऊ में अगर पिछले कुछ दिनों की बात करें तो एक निजी चैनल में कार्यरत वीडियो जर्नालिस्ट मनोज मिश्रा की मौत समय रहते ईलाज न मिलने के कारण हो गई थी। समाचार एजेंसी में अपनी सेवा दे रहे अमृत मोहन की मौत की वजह भी राजधानी की लचर स्वास्थय व्यावस्था ही थी। ये हाल तो है सूबे के सरकारी हॉस्पिटल का। इससे हटकर अगर कोई निजी हॉस्पिटल का रूख करता है तो वहा पर मरीज और उनके परिजनों का और भी बुरा हाल हो जाता है। बेलगाम निजी हॉस्पिटल संचालकों को किसी भी सरकारी खौफ नहीं है। इनकी सामानांतर खुद की सरकार है। यही वजह है कि ये बेलगाम है और बेखौफ होकर ईलाज के नाम पर मरीज और उनके परिजनों का खून चूसने के बाद भी सरेराम मौत बाट रहे है।
ऐसा ही एक निजी हॉस्पिटल लखनऊ में गोमतीनगर के विकास खण्ड – 2 में स्थित है। इस हॉस्पिटल का नाम है मेयो हॉस्पिटल। कहने के लिए तो यह हॉस्पिटल है लेकिन जो इस मुगालते में रहा है कि यह हॉस्पिटल है और यहाँ मरीजों का ईलाज होता है। तो यह बिल्कुल खुद को धोखा देने जैसा है। दरअसल यह हॉस्पिटल नहीं बल्कि मानवता का क़त्ल करने वाला कत्लखाना है। यहाँ डॉक्टर नहीं उनके भेष में साक्षात यमराज तैनात है। ऐसा हमारा मानना बिल्कुल नहीं है बल्कि उन लोगों का है जिन्होंने अपनों को खोया है। वैसे तो इस हॉस्पिटल के दामन पर दाग ही दाग है लेकिन पिछले दिनों जो घटनाये हुई है उसने फिर से हॉस्पिटल की काली करतूत की पोल खोल दी है।
बुधवार की रात यहाँ पर भर्ती चारबाग निवासी 45 वर्षीय रमेश कुमार सिंह ( रमेश ठाकुर ) की अचानक मौत हो गई थी। रमेश ठाकुर कोरोना से पीड़ित थे। पहले उनका ईलाज लोक बंधु हॉस्पिटल के एल – 2 में हो रहा था। हालत बिगड़ने पर यहाँ से इन्हे एल -3 के लिए रिफर किया गया था। रिफर करने के बाद एल – 3 की जगह मेयो हॉस्पिटल में बनाये गए एल – 2 में इनका ईलाज किया जाता रहा। रमेश ठाकुर के भाई राकेश कुमार सिंह के मुताबिक बुधवार की देर रात तक उनकी उनके भाई रमेश ठाकुर से फोन पर चैटिंग होती रही। चैट से हुई बातचीत के दौरान रमेश ने ऐसा कुछ भी जिक्र नहीं किया था कि उनको किसी तरह की बड़ी तकलीफ है। बाद में अचानक मेयो के डॉक्टरों ने रमेश कुमार सिंह को मृत घोषित कर दिया। हद तो तब हो गई जब मौत के बाद मृतक के परिजनों को 3 लाख रूपये से भी ज्यादा का बिल थमा दिया गया। रमेश की मौत के बाद पहले से ही आहत जब परिजनों को भारी भरकम बिल थमाया तो सभी का गुस्सा हॉस्पिटल प्रशासन पर फूट पड़ा। बाद में मृतक के अधिवक्ता भाई और उनके परिजनो के साथ ही मृतक के दर्जनों शुभचिंतकों ने हॉस्पिटल में खूब हंगामा किया। पुलिस आई और मजिस्ट्रेट भी पहुंचे लेकिन सब बेनतीजा रहा है। मृतक के अधिवक्ता भाई ने मामले में कानूनी लड़ाई से जिम्मेदार हॉस्पिटल प्रशासन को सज़ा दिलाने की बात कही है।
(मृतक के भाई) (बिल कि कापी)
रमेश ठाकुर की मौत का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि एक और मरीज बाराबंकी निवासी पेशे से पत्रकार नीरज श्रीवास्तव की मौत के बाद भी उनके परिजनों ने हॉस्पिटल प्रशासन पर लापरवाही के गंभीर आरोप लगाए है। मृतक के पिता प्रकाश श्रीवास्तव की माने तो नीरज को निमोनिया की शिकायत के चलते डाक्टरों ने यहाँ भर्ती किया था। बाद में जब उनकी मौत हो जाती है तो डॉक्टरों द्वारा डिस्चार्ज स्लिप पर मौत की वजह दिल का दौरा बताई जाती है। साफ है कि हॉस्पिटल में काली कमाई का बड़ा गोरखधंदा हॉस्पिटल के सचालको द्वारा संचालित किया जा रहा है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि हॉस्पिटल की तानाशाही और यहाँ पर लापरवाही से हो रही मौतों की जानकारी सरकार से लेकर जिम्मेदारों तक है इसके बावजूद भी आरोपियों पर कार्रवाई की जगह सब मौन है। सरकारी हुक्मरान आखिर इतने सालों तक चुप्पी क्यों साधे है यह अपने आप में ही काफी हैरान और परेशान करने वाली बात है। सरकार और उनके हुक्मरान ऐसे हॉस्पिटल के खिलाफ नतमस्तक क्यों है यह जाँच का विषय है लेकिन ऐसे हॉस्पिटल से आपको खुद जरूरत है सतर्क और सावधान रहने की।
Posted By:-Amitabh Chaubey