लखनऊ (जनमत ) :- ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता है| इसे भारतीय संवत्सर भी कहते हैं| चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी| नववर्ष के प्रारम्भ में नौ दिन तक वासन्तिक (चैत्र) नवरात्र कहा जाता है| वसंत नवरात्र में जगत जननी मां जगदंबा दुर्गाजी की आराधना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है| साल में चार होते हैं|
नवरात्र – 2 गुप्त नवरात्र (आषाढ़ व माघ के शुक्लपक्ष) और 2 प्रत्यक्ष नवरात्र (चैत्र व आश्विन के शुक्लपक्ष) होते हैं. वसन्त ऋतु में दुर्गाजी की पूजा-आराधना से जीवन के सभी प्रकार की बाधाओं की निवृत्ति होती है. वासन्तिक नवरात्र में शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना फलदायी मानी गई है.नौ गौरी व माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है|माँ जगदम्बा की आराधना का विधान- माँ जगदम्बा के नियमित पूजा में सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है. ज्योतिषों की माने तो इस बार नवरात्र 9 अप्रैल, मंगलवार से 17 अप्रैल, बुधवार तक रहेगा. चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल, सोमवार को रात्रि 11 बजकर 51 मिनट पर लगेगी जो कि 9 अप्रैल, मंगलवार को रात्रि 8 बजकर 32 मिनट तक रहेगी| उदयातिथि के मान के अनुसार 9 अप्रैल, मंगलवार को प्रतिपदा तिथि रहेगी| कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 9 अप्रैल, मंगलवार, दिन में 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट (अभिजीत मुहूर्त) तक हैं|
इन बातों को न करें नजरअंदाज
कलश स्थापना रात्रि में नहीं की जाती है. कलश स्थापना के लिए कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए. शुद्ध मिट्टी की वेदिका बनाकर या मिट्टी के नये गमले में जौ के दाने भी बोए जाने चाहिए. माँ जगदम्बा को लाल चुनरी, अढ़उल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा व मिष्ठान आदि अर्पित करके शुद्ध देशी घी का दीपक जलाना चाहिए. दुर्गासप्तशती का पाठ एवं मन्त्र का जप करके आरती करनी चाहिए| माँ जगदम्बा की आराधना अपने परम्परा व धार्मिक विधान के अनुसार करना शुभ फलदायी रहता है. ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को अपनी दिनचर्या नियमित व संयमित रखनी चाहिए| अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र भोजन अथवा कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए| व्यर्थ के कार्यों तथा वार्तालाप से बचना चाहिए| नित्य प्रतिदिन स्वच्छ व धुले हुए वस्त्र धारण करने चाहिए| व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए|
मां के नौ स्वरूप
- प्रथम मुख निर्मालिका गौरी
- द्वितीय ज्येष्ठा गौरी
- तृतीय-सौभाग्य गौरी
- चतुर्थ श्रृंगार गौरी
- पंचम विशालाक्षी गौरी
- षष्ठ-ललिता गौरी
- सप्तम-भवानी गौरी
- अष्टम्-मंगला गौरी
- नवम्-सिद्ध महालक्ष्मी गौरी
माँ दुर्गा के नौ स्वरूप
- प्रथम शैलपुत्री
- द्वितीय ब्रह्मचारिणी
- तृतीय चन्द्रघण्टा
- चतुर्थ-कुष्माण्डा देवी
- पंचम स्कन्दमाता
- षष्ठ-कात्यायनी
- सप्तम-कालरात्रि
- अष्टम-महागौरी
- नवम्-सिद्धिदात्री
ऐसे करें पूजन
माँ जगदम्बा व कलश के समक्ष शुद्ध देशी घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करके धूप जलाकर आराधना करना शुभ फलदायक रहता है. नवरात्र में यथासम्भव रात्रि जागरण करना चाहिए. माता जगत् जननी की प्रसन्नता के लिए सर्वसिद्धि प्रदायक सरल मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ का जप अधिकतम संख्या में नित्य करना लाभकारी रहता है. नवरात्र के पावन पर्व पर माँ दुर्गा की पूजा अर्चना करके अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए.नवदुर्गा को नौ दिन क्या- क्या करें अर्पित
- प्रथम दिन (प्रतिपदा) – उड़द, हल्दी, माला फूल
- द्वितीय दिन (द्वितिया) तिल, शक्कर, चूड़ी, गुलाल, शहद
- तृतीय दिन (तृतीया) – लाल वस्त्र, शहद, खीर, काजल
- चतुर्थ दिन (चतुर्थी) दही, फल, सिंदूर, मसूर
- पंचम दिन (पंचमी) दूध, मेवा, कमलपुष्प, बिन्दी
- षष्ठ दिन (षष्ठी)- चुनरी, पताका, दूर्वा
- सप्तम दिन (सप्तमी) बताशा, इत्र, फल पुष्य
- अष्टम दिन (अष्टमी)- पूड़ी, पीली मिठाई, कमलगट्टा, चन्दन, वस्त्र
- नवम् दिन (नवमी) खोर, सुहाग सामग्री, साबूदाना, अक्षत फल, बताशा आदि|
कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त
सीतापुर के नैमिषारण्य में स्थित आदिशक्ति मां ललिता देवी मंदिर के प्रबंधक शंकर दीक्षित ने बताया कि 9 अप्रैल से वासंतिक नवरात्रि प्रारंभ हो जाएंगे जिसको लेकर मंदिर में सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है| मां ललिता देवी मंदिर के प्रधान पुजारी लाल बिहारी ने बताया कि माता की आरती प्रातः 8:30 की जाएगी और रात्रि में 8:00 बजे की जाएगी. नैमिष आचार्य पंडित रमेश चंद्र द्विवेदी ने बताया कि चैत्र मास शुक्ल पक्ष से नवरात्र प्रारंभ होंगे जिसमें 8 नवरात्रि है. नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना की जाएगी |जिसका मुहूर्त सुबह 11:36 से प्रारंभ होगा जो 12:24 तक रहेगा| उसके पश्चात 3:17 बजे से 6:14 बजे तक रहेगा|
PUBLISHED BY – GAURAV UPADHYAY