अक्षय नवमी की शुरुआत कैसे हुई, किसने की थी सबसे पहली पूजा? जानिए पौराणिक और आयुर्वेदिक महत्व

अक्षय नवमी की शुरुआत देवी लक्ष्मी द्वारा आंवले की पूजा से हुई थी। जानिए क्यों आंवला अक्षय फल कहलाता है और इसका धार्मिक व आयुर्वेदिक महत्व क्या है।

अक्षय नवमी की शुरुआत कैसे हुई, किसने की थी सबसे पहली पूजा? जानिए पौराणिक और आयुर्वेदिक महत्व
Published By- A.K. Mishra

जनमत न्यूज़/लखनऊ:- कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा जाता है। यह दिन धार्मिक, पौराणिक और आयुर्वेदिक — तीनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा है, क्योंकि इसे ‘अक्षय फल’ यानी कभी न खत्म होने वाले पुण्य और आरोग्य का प्रतीक माना गया है।

पद्म पुराण के अनुसार, सागर मंथन के समय जब विष की बूंदें छलकीं तो उनसे तीक्ष्ण और गर्म प्रकृति वाली वनस्पतियों की उत्पत्ति हुई, जबकि अमृत की बूंदों से शीतल और आरोग्यदायी औषधियों का जन्म हुआ। इन्हीं में से एक है आंवला (Amla), जिसे आयुर्वेद में श्रेष्ठ औषधीय फल कहा गया है।

आंवला शरीर को शीतलता देता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और त्रिफला जैसी प्रसिद्ध औषधियों का मुख्य घटक है। चाहे इसे कच्चा खाया जाए, चटनी, अचार, मुरब्बा या चूर्ण के रूप में — यह हर रूप में स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। इसलिए वैद्य इसे ‘औषधियों का राजा’ कहते हैं।

संख्यात्मक दृष्टि से ‘9’ पूर्णता का प्रतीक है। इसलिए नवमी तिथि को संपूर्णता और अक्षयता प्रदान करने वाली तिथि कहा गया है। इसी कारण इसे ‘अक्षय नवमी’ या ‘आखा नवमी’ भी कहा जाता है — जिसका अर्थ ही होता है “अविनाशी या अखंड”

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी धरती पर भ्रमण कर रही थीं। उन्होंने देखा कि मनुष्य दुखी हैं और उनके पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं। तब उन्होंने सोचा — ऐसा क्या उपाय हो जिससे धर्म में लगे लोगों को अक्षय पुण्य प्राप्त हो सके।

इसी समय देवर्षि नारद आए और उन्होंने सुझाव दिया कि यदि भगवान विष्णु और महादेव दोनों की एक साथ पूजा की जाए, तो यह संभव है। लेकिन दोनों के लिए भिन्न तत्वों की आवश्यकता थी — विष्णु को तुलसी प्रिय है और शिव को बेलपत्र

तब देवी लक्ष्मी ने एक समाधान निकाला — आंवला वृक्ष, जिसमें तुलसी और बेल दोनों के गुण मौजूद हैं। इसीलिए उन्होंने कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन आंवले की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों प्रकट हुए और कहा कि आंवले की पूजा ही हमारी पूजा के समान है

आंवले का आध्यात्मिक प्रतीकात्मक महत्व

फल – ब्रह्मा का प्रतीक, तना – विष्णु का प्रतीक, जड़ें – शिव का स्वरूप, पत्तियां – देवी शक्ति का प्रतीक

इस तरह आंवला ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवी के संयुक्त स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इसे ‘अक्षय भंडार का प्रतीक’ कहा जाता है — जो आरोग्य, ऐश्वर्य और ज्ञान तीनों प्रदान करता है।

अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा कर उसकी छाया में भोजन करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि आंवले का वृक्ष वातावरण को शुद्ध करता है, और इसकी छाया में भोजन करने से शरीर को पवित्र ऊर्जा और आरोग्य प्राप्त होता है।