मिर्जापुर के बरही गांव में सैकड़ों वर्षों पुराना मेला, आस्था का सैलाब विज्ञान पर भारी
तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले में दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां आने से भूत-प्रेत बाधा समाप्त हो जाती है और संतानहीन दंपतियों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मिर्जापुर/जनमत न्यूज़। मिर्जापुर जिले के बरही गांव में स्थित बेचूबीर और बरहिया माता मंदिर पर सैकड़ों वर्षों से लगने वाला ऐतिहासिक मेला इस बार भी पूरे उल्लास के साथ जारी है। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले में दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां आने से भूत-प्रेत बाधा समाप्त हो जाती है और संतानहीन दंपतियों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
श्रद्धालुओं का कहना है कि उनकी मन्नतें यहां आकर पूरी होती हैं, इसलिए वे हर साल मेले में पहुंचते हैं। पहाड़ों से घिरे बरही गांव में लोग खेतों और पहाड़ियों पर टेंट लगाकर डेरा डालते हैं। बारिश और कीचड़ के बावजूद आस्था का सैलाब कम नहीं हुआ है—श्रद्धालु पूरे उत्साह से मंदिर पहुंच रहे हैं।
कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पहले बरही गांव में बेचू यादव नामक एक वीर पहलवान रहते थे। एक दिन जंगल में भैंस चराते समय उनका सामना शेर से हो गया। दोनों में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें बेचू यादव और शेर दोनों घायल हो गए। घायल अवस्था में जब बेचू गांव लौटे, तब आकाशवाणी हुई—"बेचू, जो मांगना हो मांग लो।" बताया जाता है कि शेर के रूप में स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए थे। बेचू यादव ने कहा कि "हे प्रभु, मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस जो भी भक्त इस चौरी पर आए उसकी मनोकामना पूरी हो।"
इधर, उनकी पत्नी जो उस समय प्रसव के बाद थी, बेचू यादव की खोज में जंगल में निकल पड़ीं। खून के निशान का पीछा करते हुए वह उस स्थान तक पहुंचीं जहाँ बेचू यादव ने प्राण त्यागे थे। कुछ ही दूरी पर उन्होंने स्नान कर वहीं समाधि ले ली। तब से यह स्थान बेचूबीर और बरहिया माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ और दोनों की संयुक्त पूजा होती है।
मेले में सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। पूरे परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। महिला पुलिस कर्मियों के साथ भारी पुलिस बल और प्रशासनिक अधिकारी लगातार निगरानी में हैं। उपजिलाधिकारी चुनार राजेश कुमार वर्मा और अहरौरा थाना प्रभारी स्वयं टीम के साथ मेले का भ्रमण कर रहे हैं।
श्रद्धालु मंदिर से प्रसाद के रूप में अच्छत (चावल का दाना) लेकर जाते हैं। कहा जाता है कि यह प्रसाद हर मनोकामना पूरी करने वाला होता है।
बारिश के बावजूद लोगों का उत्साह देखते ही बनता है—कहीं भक्ति गीतों की गूंज है, तो कहीं ढोल-नगाड़ों पर नाचते श्रद्धालु। आस्था और परंपरा का यह संगम आज भी विज्ञान को चुनौती देता हुआ दिख रहा है।

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