गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल: पांच पीढ़ियों से हिंदू परिवार बना रहा ताजिया, जुलूस में चलता है सबसे आगे
उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के कोइरौना बाजार का ताजिया जुलूस आपसी भाईचारे और गंगा-जमुनी तहजीब की एक अनोखी मिसाल पेश करता है। यहां एक हिंदू राजपूत परिवार पिछले करीब पांच पीढ़ियों से न सिर्फ ताजिया बनवाता आ रहा है, बल्कि जुलूस में उनका ताजिया सबसे आगे चलता है।

भदोही/जनमत न्यूज। मोहर्रम के मौके पर जहां पूरे देश में ताजियों के जुलूस निकाले जाते हैं, वहीं उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के कोइरौना बाजार का ताजिया जुलूस आपसी भाईचारे और गंगा-जमुनी तहजीब की एक अनोखी मिसाल पेश करता है। यहां एक हिंदू राजपूत परिवार पिछले करीब पांच पीढ़ियों से न सिर्फ ताजिया बनवाता आ रहा है, बल्कि जुलूस में उनका ताजिया सबसे आगे चलता है।
कोइरौना के रहने वाले संजय सिंह का परिवार मोहर्रम के अवसर पर ताजिया निकालने की इस परंपरा को अपने पूर्वज ठाकुर हरिमोहन सिंह के समय से निभा रहा है। संजय सिंह बताते हैं कि उनके पूर्वज संतान न होने से दुखी थे। मोहर्रम के दिन ताजिया जुलूस देखकर उन्होंने इसके पीछे की मान्यता जाननी चाही। बताया गया कि यह जुलूस इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकाला जाता है और मन्नत मानने पर इच्छाएं पूरी होती हैं। ठाकुर हरिमोहन सिंह ने भी मन्नत मांगी और कुछ समय बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तभी से यह परंपरा उनके परिवार में चलती आ रही है।
इस बार भी संजय सिंह ने अपने परिवार के सहयोग से महीनों की मेहनत के बाद बेहतरीन नक्काशी वाला ताजिया तैयार किया। रविवार को जब ताजिया जुलूस निकला तो उनका ताजिया हमेशा की तरह सबसे आगे था। जुलूस में कुल पांच ताजिए शामिल हुए, जिनमें संजय सिंह का ताजिया मुख्य आकर्षण बना रहा।
खास बात यह है कि यह परिवार ताजिया जुलूस में शरीक मुस्लिम भाईयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलता है। यही नहीं, हिंदू परिवार और समुदाय के लोग सड़क किनारे शर्बत, मिश्रांबु, खिचड़ी और हलवा वितरित कर आपसी सौहार्द का संदेश भी देते हैं।
जुलूस में शामिल स्थानीय ग्राम प्रधान सुनील सरोज ने बताया कि यह जुलूस वर्षों से शांतिपूर्ण तरीके से निकलता आ रहा है। उन्होंने कहा कि “हिंदू समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़कर इसमें सहयोग करते हैं। यह हमारी तहजीब का सुंदर उदाहरण है।”
संजय सिंह कहते हैं, "हमारे लिए यह परंपरा आस्था का विषय है। यह भाईचारे और एकता की मिसाल है। आज भी हमारी अगली पीढ़ी इसे पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ निभा रही है।" वाकई जब देश में जाति-धर्म को लेकर कई बार तनाव और विभाजन की खबरें सामने आती हैं, ऐसे में कोइरौना का यह उदाहरण आपसी प्रेम और सद्भावना की राह दिखाता है।