इजरायल के ईरान पर हमले से पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर, परमाणु ठिकानों को बनाया गया निशाना

इजरायल द्वारा शुक्रवार सुबह ईरान पर किए गए जबरदस्त हवाई हमलों से पश्चिम एशिया में तनाव का स्तर बेहद गंभीर हो गया है। बताया जा रहा है कि इन हमलों में ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल अड्डों और परमाणु कार्यक्रम से जुड़े अहम ठिकानों को निशाना बनाया गया।

इजरायल के ईरान पर हमले से पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर, परमाणु ठिकानों को बनाया गया निशाना
Published By: Satish Kashyap

देश/विदेश (जनमत): इजरायल द्वारा शुक्रवार सुबह ईरान पर किए गए जबरदस्त हवाई हमलों से पश्चिम एशिया में तनाव का स्तर बेहद गंभीर हो गया है। बताया जा रहा है कि इन हमलों में ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल अड्डों और परमाणु कार्यक्रम से जुड़े अहम ठिकानों को निशाना बनाया गया। इस कार्रवाई के बाद तेहरान ने इजरायल और अमेरिका को कड़ा जवाब देने की चेतावनी दी है, हालांकि अमेरिका ने इसमें किसी भी तरह की भागीदारी से इनकार किया है।

ईरान के सरकारी टीवी चैनलों की रिपोर्टों के अनुसार, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के प्रमुख होसैन सलामी की मौत भी हमलों में हुई है। इन घटनाओं ने न केवल क्षेत्रीय शांति को खतरे में डाला है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता बढ़ा दी है, खासकर तेल बाजारों में जहां भारी उथल-पुथल देखने को मिली है।

परमाणु सुरक्षा मामलों की विशेषज्ञ एंड्रिया स्ट्रिकर के अनुसार, ईरान की भूमिगत परमाणु साइट्स को निष्क्रिय करने के लिए कई दिन की हवाई कार्रवाई और विशेष बंकर-भेदी बमों की जरूरत होगी। खासकर फोर्डो और नतान्ज जैसी गहराई में बनी साइट्स पर हमला करना तकनीकी रूप से जटिल है।

ईरान की संभावित प्रतिक्रिया को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि वह इजरायली सैन्य ठिकानों के अलावा नागरिक इलाकों को भी निशाना बना सकता है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व सैन्य अधिकारी रॉजर शैनहन के अनुसार, अगर ईरान ने नागरिकों को निशाना बनाया, तो यह संघर्ष नियंत्रण से बाहर जा सकता है।

वर्जीनिया यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मारा रडमैन के अनुसार, इजरायल की यह कार्रवाई कोई एकल हमला नहीं, बल्कि एक लंबे सैन्य अभियान की शुरुआत हो सकती है, जिसका उद्देश्य ईरान की परमाणु क्षमताओं को पूरी तरह नष्ट करना है।

सिंगापुर के पूर्व राजनयिक बिलाहारी कौसिकन ने कहा कि यह संघर्ष क्षेत्रीय स्तर पर ही सीमित रह सकता है, क्योंकि फिलहाल ईरान के समर्थन में कोई बड़ी शक्ति सक्रिय नहीं दिख रही है। उन्होंने यह भी कहा कि सुन्नी अरब देश चुपचाप इजरायल के साथ खड़े हैं।

कार्नेगी संस्था की फेलो निकोल ग्रजेव्स्की ने चिंता जताई कि इस हमले ने अमेरिका-ईरान वार्ता को संकट में डाल दिया है और यह आगे और अधिक खतरनाक मोड़ ले सकता है।

परमाणु नीति विशेषज्ञ जेफरी लुईस ने संदेह जताया कि हमले का उद्देश्य सिर्फ परमाणु कार्यक्रम को बाधित करना नहीं बल्कि ईरान के शासन को अस्थिर करना भी हो सकता है। वहीं, अंकित पांडा ने आशंका जताई कि अगर ईरान के शीर्ष रणनीतिक संस्थानों को निशाना बनाया गया है, तो यह सीधे तौर पर सत्ता परिवर्तन की कोशिश के रूप में देखा जाएगा।

यह स्थिति आने वाले समय में और भी विकराल रूप ले सकती है। सभी की निगाहें अब इस पर टिकी हैं कि ईरान की प्रतिक्रिया कैसी होगी और क्या अमेरिका इस टकराव में और गहराई से जुड़ जाएगा।