मियावाकीं पद्धति से कलेक्ट्रेट परिसर में वन संरक्षण कार्य का जिलाधिकारी ने किया लोकार्पण
जलवायु परिवर्तन से निपटने, प्रदूषण के स्तर को कम करने और शहर के हरित आवरण में वृद्धि करने के लिये मियांवाकी पद्धति वनारोपण अतिमहत्वपूर्ण कार्य है। मियावाकीं पद्धति से कलेक्ट्रेट परिसर में वन संरक्षण कार्य का लोकार्पण जिलाधिकारी विशाल सिंह द्वारा अपर जिलाधिकारी कुंवर वीरेंद्र मौर्य, शिव नारायण सिंह की उपस्थिति में किया गया।

भदोही/जनमत। जलवायु परिवर्तन से निपटने, प्रदूषण के स्तर को कम करने और शहर के हरित आवरण में वृद्धि करने के लिये मियांवाकी पद्धति वनारोपण अतिमहत्वपूर्ण कार्य है। मियावाकीं पद्धति से कलेक्ट्रेट परिसर में वन संरक्षण कार्य का लोकार्पण जिलाधिकारी विशाल सिंह द्वारा अपर जिलाधिकारी कुंवर वीरेंद्र मौर्य, शिव नारायण सिंह की उपस्थिति में किया गया। जिलाधिकारी ने बताया कि जनपद की भौगोलिक परिवेश के अनुकूल लगभग 6000 वृक्षारोपण किया गया है, जो कलेक्ट्रेट में आने वाले फरियादियों, जनपदवासियों, अधिकारियों, कर्मचारियों को आगामी 03 वर्षों में छाया व फल सहित शुद्ध हवा व जल संरक्षण प्रदान करेगा। डीएम ने बताया कि सभी के सामूहिक प्रयासों से सामूहिक वन के रूप में विकसित किया जा रहा है।
यह परियोजना पर्यावरण संरक्षण और शहरी वनीकरण को बढ़ावा देने के लिए कार्यदाई संस्था भदोही औद्योगिक विकास प्राधिकरण बीडा की तरफ से शुरू की गई है। जिसका पर्यवेक्षण व अनुरक्षण वन विभाग द्वारा किया जाएगा।
जिलाधिकारी ने इस अवसर पर कहा, "मियावाकी पद्धति से वन बनाने का यह एक अनोखा प्रयास है। हमारा लक्ष्य है कि हम शहर में हरित क्षेत्र को बढ़ाएं और पर्यावरण को संरक्षित करें।" मियावाकी पद्धति एक जापानी विधि है जिसमें पौधों को एक दूसरे से कम दूरी पर लगाया जाता है। यह पद्धति शहरी वनीकरण के लिए बहुत प्रभावी है और इसमें पौधों की वृद्धि 10 गुना अधिक तेजी से होती है। इस परियोजना में विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाए जाएंगे जो शहरी वातावरण में अनुकूल हैं। जिलाधिकारी ने कहा, "हमारा लक्ष्य है कि हम शहर में एक सुंदर और हरित वातावरण बनाएं।"
डीएम ने बताया कि कलेक्ट्रेट में निर्धारित स्थान पर 6000 वृक्ष लगाए गए है। मियांवाकी पद्धति में सबसे कम से बढ़ते हुए सबसे अधिक ऊंचाई के क्रम में 04 लेयर में वृक्षारोपण किया जाता है। बढ़ते क्रम में अनार, अमरुद, शीशम, नीम या इसी श्रृंखला में अन्य प्रजातियों के पौधे लगाए जाते हैं। प्रधानमंत्री ने भी 'मन की बात' के अपने हालिया एपिसोड में मियावाकी वृक्षारोपण की अवधारणा पर चर्चा की। उन्होंने सीमित स्थानों में घने शहरी वन स्थापित करने की जापानी तकनीक पर प्रकाश डाला।
मियावाकी पद्यति के प्रणेता जापानी वनस्पति वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी हैं। इस पद्यति से बहुत कम समय में जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है। जिसका मूल उद्देश्य भूमि के एक छोटे से टुकड़े के भीतर हरित आवरण को सघन बनाना था। इस कार्यविधि में पेड़ स्वयं अपना विकास करते हैं और तीन वर्ष के भीतर वे अपनी पूरी लंबाई तक बढ़ जाते हैं। मियावाकी पद्धति में उपयोग किये जाने वाले पौधे ज़्यादातर आत्मनिर्भर होते हैं और उन्हें खाद एवं जल देने जैसे नियमित रख-रखाव की आवश्यकता नहीं होती है। स्थानीय वृक्षों का घना हरा आवरण उस क्षेत्र के धूल कणों को अवशोषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जहाँ उद्यान स्थापित किया गया है। साथ ही पौधे सतह के तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं। इन वनों के लिये उपयोग किये जाने वाले कुछ सामान्य स्थानीय पौधों में अंजन, अमला, बेल, अर्जुन और गुंज शामिल हैं। ये वन नई जैव-विविधता और एक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करते हैं जिससे मृदा की उर्वरता में वृद्धि होती है। भदोही जैसे एक सीमित क्षेत्र वाले शहर में मियावाकी वृक्षारोपण पद्धति हरित आवरण को पुनर्प्राप्त करने में काफी मददगार साबित होगी।
जलवायु परिवर्तन से निपटने, प्रदूषण के स्तर को कम करने और शहर के हरित आवरण में वृद्धि करने के लिये जनपद के विभिन्न खाली भूमि क्षेत्रों में बीड़ा द्वारा मियावाकी वन दृष्टिकोण को लागू किया जा रहा है।इस अवसर पर प्रभागीय वनाधिकारी नीरज आर्य ने कहा, "मियावाकी पद्धति से वन बनाने का यह एक अच्छा प्रयास है। हमें उम्मीद है कि यह परियोजना शहर के पर्यावरण को सुधारने में मदद करेगी।" इस अवसर पर बीड़ा उप कार्यपालक अधिकारी अनीता देवी, ओएसडी जगदीश, नाजिर आशीष श्रीवास्तव, बीड़ा व कलेक्ट्रेट के स्टाफ आदि ने भी वृक्षारोपण किया l