केरल से उठा बीड़ी का विवाद बिहार में सुलगा मच गया धुआं ही धुआं !
बिहार चुनाव में अब बीड़ी कांग्रेस के लिए हानिकारक साबित हो सकती है. बता दें कि केरल कांग्रेस द्वारा हाल ही में सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक पोस्ट नें बिहार में.........

बिहार चुनाव में अब बीड़ी कांग्रेस के लिए हानिकारक साबित हो सकती है. बता दें कि केरल कांग्रेस द्वारा हाल ही में सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक पोस्ट नें बिहार में राजनीतिक हलचल मचा दी है. इस पोस्ट में बिहार की तुलना बीड़ी से की गई साथ ही ये तर्क दिया कि दोनों ही बी से शुरू होते हैं और अब उन्हें पाप नहीं कहा जा सकता. पोस्ट में बीड़ी पर GST में कमी का भी जिक्र था. यह पोस्ट बिहार के लोगों को अपमानित करने वाला माना गया. सोशल मीडिया पर व्यापक आलोचना के बाद, केरल कांग्रेस ने पोस्ट हटा दिया और माफी मांगी. हालांकि, भाजपा और अन्य NDA दलों ने इस घटना को बिहार के खिलाफ अपमान के रूप में उठाया है.
बीड़ी से बिहार के संदर्भ का दूसरा आशय गरीबी ओर बदहाली का समझा गया। दक्षिण-पश्चिम के राज्यों में सक्रिय क्षेत्रीय दलों के नेता बिहार और बिहार-वासियों को आए दिन अपमानित कर जाते हैं, लेकिन कांग्रेस के स्तर पर इस कदर अपमान का संभवत: यह पहला अवसर था।
एनडीए के नेताओं ने इस मुद्दे को लपका
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मां के लिए प्रयुक्त गालियों से खार खाए एनडीए के नेताओं ने इस मुद्दे को अविलंब लपक लिया। कांग्रेस की चौतरफा आलोचना होने लगी। पहले पचड़े में तो उसके साथ महागठबंधन के दूसरे घटक दल भी मुंहजोरी कर ले जा रहे थे, लेकिन बिहार की अस्मिता के प्रश्न पर सबसे पहले राजद ने ही पल्ला झाड़ लिया।
अंतत: कांग्रेस ने बैकफुट होने में ही भलाई समझी, अन्यथा बीड़ी के साथ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के वे जहरीले बोल भी सुलगते, जो बिहारवासियों के कलेजे में चुभते हैं। दरभंगा में राहुल गांधी के साथ स्टालिन मंच साझा कर गए हैं और एनडीए उन गड़े मुर्दों को उखाड़ने का अवसर बस ढूंढ़ रहा।
वोटर अधिकार यात्रा के दौरान दरभंगा में ही बने एक मंच से प्रधानमंत्री की मां के लिए अपशब्द कहे गए थे। तब बचाव में महागठबंधन के पास यह तर्क था कि उस मंच पर राहुल और तेजस्वी यादव नहीं थे। इस बार तो कांग्रेस रंगे हाथ थी।
आक्षेप की आंच भी विरोधियों और नेताओं से आगे जनता तक पहुंच रही थी। पहले से आलोचना झेल रही कांग्रेस की बिहार इकाई किसी दूसरे झमेले में नहीं पड़ना चाहती।
बेवजह के पचड़ों में उसे सहयोगियों का साथ भी मिलने से रहा, क्याेंकि अभी महागठबंधन में ही शह-मात का खेल बंद नहीं हुआ है।
जनता तो मुद्दों पर पहले से ही खार खाए हुए है। एसआईआर के बहाने बिहार की परिक्रमा कर कांग्रेस इससे अवगत भी हो चुकी है। इसीलिए उसने इस 'बीड़ी' को बुझा देने में ही भलाई समझी।