बांग्लादेश में हालात बेकाबू, पत्रकारों ने हिंसा में बाल-बाल बचाई अपनी जान; अखबार भी बंद

बांग्लादेश एक बार फिर गंभीर राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल की चपेट में है। युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद राजधानी ढाका समेत कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।

बांग्लादेश में हालात बेकाबू, पत्रकारों ने हिंसा में बाल-बाल बचाई अपनी जान; अखबार भी बंद
Published By- Diwaker Mishra

ढाका/जनमत न्यूज़। बांग्लादेश एक बार फिर गंभीर राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल की चपेट में है। युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद राजधानी ढाका समेत कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। गुस्साए प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने देश के दो सबसे बड़े अखबारों प्रोथोम आलो और द डेली स्टार के दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बुधवार देर रात सैकड़ों की संख्या में हादी के समर्थक नारेबाजी करते हुए ढाका में अखबारों के दफ्तरों तक पहुंचे और आधी रात के करीब इमारतों में आग लगा दी। इस हमले के बाद दोनों मीडिया संस्थानों में अफरा-तफरी मच गई।

प्रोथोम आलो के कार्यकारी संपादक सज्जाद शरीफ ने इस घटना को बांग्लादेशी मीडिया के इतिहास की सबसे काली रात करार दिया। उन्होंने कहा, “कुछ असामाजिक तत्वों ने हमारे मीडिया हाउस पर हमला किया। हमारे पत्रकार अगले दिन का अखबार और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तैयार कर रहे थे, तभी यह भयावह घटना हुई। समाज में गुस्सा था, लेकिन उसे अखबारों को निशाना बनाकर निकाला गया।

सज्जाद शरीफ ने बताया कि हमले के दौरान पत्रकारों को जान बचाकर दफ्तर छोड़ना पड़ा। उन्होंने कहा, "हम आज अपना अखबार प्रकाशित नहीं कर पाए। 1998 में स्थापना के बाद 27 वर्षों में यह पहला मौका है जब प्रोथोम आलो नहीं छप सका। हमारी वेबसाइट भी कल रात से बंद है।उन्होंने सरकार से दोषियों की पहचान कर सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी पर सीधा हमला है।

कौन थे शरीफ उस्मान हादी?

32 वर्षीय शरीफ उस्मान हादी बांग्लादेश के जुलाई आंदोलन से उभरकर सामने आए एक प्रभावशाली युवा नेता थे। वह छात्र-आधारित मंच इंकलाब मंच के संयोजक और प्रवक्ता थे, जो किसी भी तरह के राजनीतिक वर्चस्व का विरोध करता था।

ढाका विश्वविद्यालय से शिक्षित हादी न केवल सत्तारूढ़ अवामी लीग, बल्कि पारंपरिक राजनीति के भी मुखर आलोचक थे। वह खुद को नई पीढ़ी की आवाज और राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव का प्रतीक मानते थे।

कैसे हुई हत्या?

पुलिस के मुताबिक, 12 दिसंबर को हादी ढाका के मोटिजील इलाके में बॉक्स कल्वर्ट रोड के पास रिक्शा से जा रहे थे, तभी नकाबपोश हमलावरों ने उनके सिर में गोली मार दी। गंभीर रूप से घायल हादी को इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया, जहां छह दिन बाद उनकी मौत हो गई। अंतरिम मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने हादी की मौत की पुष्टि की, जिसके बाद देशभर में विरोध-प्रदर्शन और हिंसा तेज हो गई।

देशभर में हिंसा, चुनाव से पहले बढ़ी चिंता

हादी की मौत के बाद ढाका समेत कई शहरों में प्रदर्शनकारियों ने सरकारी और निजी इमारतों में तोड़फोड़ की, अखबारों के दफ्तर जलाए और राजनीतिक प्रतिष्ठानों से जुड़े प्रतीकों को निशाना बनाया।

यह हिंसा ऐसे समय में भड़की है जब बांग्लादेश एक अहम राष्ट्रीय चुनाव की तैयारी कर रहा है और भारत के साथ अपने रिश्तों की समीक्षा कर रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि हादी की हत्या ने देश की पहले से नाजुक राजनीतिक स्थिति को और अस्थिर कर दिया है।