पाक आर्मी चीफ की ट्रंप से मुलाकात पर बवाल
पाकिस्तानी सेना प्रमुख और हाल ही में फील्ड मार्शल बने जनरल आसिम मुनीर की अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से वाशिंगटन में मुलाकात ने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है।

देश/विदेश (जनमत):पाकिस्तानी सेना प्रमुख और हाल ही में फील्ड मार्शल बने जनरल आसिम मुनीर की अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से वाशिंगटन में मुलाकात ने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है। यह पहली बार है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख को आधिकारिक रूप से बुलाकर बातचीत की है — जो सामान्य कूटनीतिक परंपराओं से हटकर है, क्योंकि आमतौर पर राष्ट्राध्यक्ष समान स्तर के पदाधिकारी से ही चर्चा करते हैं।
डॉन अखबार में छपे विश्लेषण में पत्रकार बाकिर सज्जाद ने इस बैठक को "मुफ्त लंच जैसी कोई चीज़ नहीं होती" वाली धारणा से जोड़ा है। उनके मुताबिक, यह मीटिंग ऐसे वक्त में हुई है जब पाकिस्तान की ओर से ईरान के समर्थन में नैतिक बयानबाज़ी सामने आई थी। इससे यह भी अंदेशा जताया जा रहा है कि अमेरिका पाकिस्तान को मिडल ईस्ट में अपने किसी रणनीतिक एजेंडे में शामिल करना चाहता है।
डोनाल्ड ट्रंप की ओर से इस मुलाकात के दौरान एक खास बयान आया, जिसमें उन्होंने कहा कि “आसिम मुनीर ईरान को बहुत अच्छे से जानते हैं,” और यह भी जोड़ा कि "वे ईरान की हालिया गतिविधियों से खुश नहीं हैं।" ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान और इज़राइल के रिश्ते खराब नहीं हैं — जिससे यह संकेत मिला कि यह बैठक मिडल ईस्ट की वर्तमान स्थिति, खासकर ईरान-इज़राइल टकराव को ध्यान में रखते हुए की गई थी।
सज्जाद के अनुसार, पाकिस्तान की अस्पष्ट कूटनीति — जहां एक ओर वह ईरान के साथ "नैतिक समर्थन" जताता है और दूसरी ओर सैन्य सहयोग से दूरी बनाए रखता है — उसका डिप्लोमैटिक बैलेंस साधने की रणनीति हो सकती है। IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) की ईरान के खिलाफ वोटिंग में पाकिस्तान की अनुपस्थिति को भी इसी संतुलन का हिस्सा माना जा रहा है।
एक और अहम बात जो इस मुलाकात को विशेष बनाती है, वह है पाकिस्तान की ओर से किसी भी राजनीतिक नेतृत्व की गैरहाज़िरी। बैठक में अमेरिका की तरफ से ट्रंप के साथ-साथ सीनेटर मार्को रूबियो और मिडल ईस्ट मामलों के प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ मौजूद थे, जबकि पाकिस्तान से केवल आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर और ISI प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मलिक ही शामिल थे।
बैठक की समय-सीमा एक घंटे तय की गई थी, लेकिन यह दो घंटे तक चली — जिससे यह साफ हो जाता है कि यह कोई साधारण शिष्टाचार भेंट नहीं थी, बल्कि किसी बड़े भू-राजनीतिक योजना का हिस्सा हो सकती है। विश्लेषकों की राय है कि यह मुलाकात पाकिस्तान के लिए अवसर के साथ-साथ दबाव भी लेकर आ सकती है, खासकर अगर अमेरिकी पक्ष ने इस “लंच मीटिंग” के बदले कोई रणनीतिक प्रतिबद्धता की उम्मीद जताई हो।