अपरा एकादशी: पापों से मुक्ति और असीम पुण्य का पर्व
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह शुभ तिथि 23 मई को पड़ रही है...
नई दिल्ली/जनमत: ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह शुभ तिथि 23 मई को पड़ रही है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को यश, कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है। इस पावन अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा चंदन, गंगाजल और कपूर से की जानी चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार, धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से अपरा एकादशी के महत्व और पूजा विधि के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि यह एकादशी अपार धन प्रदान करने वाली है और इसका व्रत करने वाले को यश व कीर्ति की प्राप्ति होती है।
अपरा एकादशी का महात्म्य
भगवान कृष्ण ने आगे बताया कि अपरा एकादशी का व्रत रखने से ब्रह्महत्या, प्रेत दोष, परनिंदा जैसे सभी पापों का शमन हो जाता है। इसके अतिरिक्त, पर स्त्री गमन, झूठी गवाही, असत्य भाषण, कल्पित शास्त्रों का अध्ययन, झूठा ज्योतिष या वैद्य बनना जैसे दुष्कर्मों से भी मुक्ति मिलती है। जो क्षत्रिय युद्ध से पलायन करता है या जो शिष्य गुरु की निंदा करता है, उन्हें भी इस व्रत के प्रभाव से नरक यातना से मुक्ति मिल जाती है।
अतुलनीय फल की प्राप्ति
कहा जाता है कि तीनों पुष्करों में कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करने या गंगा तट पर पितरों का पिंडदान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही फल अपरा एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। इसी प्रकार, मकर संक्रांति पर प्रयागराज में स्नान, शिवरात्रि पर सिंह राशि में गुरु के गोमती नदी में स्नान, कुंभ में केदारनाथ या बद्रीनाथ की यात्रा, सूर्य ग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान, स्वर्ण, हाथी-घोड़े दान करने या नवप्रसूता गौ दान करने से जो फल मिलता है, वह सब अपरा एकादशी के व्रत से सुलभ हो जाता है।
यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी और पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि के समान है। इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन करने से भक्त समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि उन्होंने यह अपरा एकादशी की कथा लोकहित के लिए कही है, और इसके पढ़ने-सुनने मात्र से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

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